पढावली, जिला मुरैना, मध्यप्रदेश








पढावली, जिला मुरैना, मध्यप्रदेश

पढ़ावली ग्राम जिला मुरैना में स्थित है। ग्वालियर से भिण्ड-इटावा की ओर जाने वाली रेलवे लाइन में शनिचरा रेलवे स्टेशन स्थित है और सड़क मार्ग से ग्वालियर-भिण्ड राजमार्ग में ग्वालियर  स्थित महाराजपुरा जो कि एयरफोर्स क्षेत्र में आता है, से ग्वालियर से भिण्ड जाते समय बांयी तरफ सड़क मार्ग से वहां पहुंचा जा सकता है जो कि महाराजपुरा से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर है और भिण्ड से ग्वालियर जाते समय मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र से दाहिनी ओर सड़क मार्ग से पढ़ावली पहुंचा जा सकता है जो कि मालनपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
पड़ावली मन्दिर दसवीं सदी के मध्य भारत के खुबसूरत मन्दिरों में से एक है। बटेसर मन्दिर समूह के पास यह मंदिर एक छोटी से पहाड़ी पर स्थित एक गढ़ी में है, इस मंदिर का निर्माण दसवी सदी के आसपास माना जाता है जबकि गढ़ी का निर्माण सत्रहवीं या अट्ठारहवीं सदी के आसपास किया गया था।
वर्तमान में मंदिर  गढ़ी पढ़ावली के इस देवालय में मूलरूप से गर्भग्रह एवं एक मण्डप का ही समावेश था, जिसमें वर्तमान में केवल प्रवेशद्वार पर स्थित मुखमण्डप ही शेष रह गया है। उक्तमुखमंडप अपनी कलात्मकता एवं भव्यता प्रदर्शित करता है। मंदिर में प्रवेशिक, अंतरला, रंगमंडप, गर्भगृह की उपस्थिति के चिन्ह मिलते हैं। पड़ावली का मंदिर भी कच्छपात वंशीय राज्यों की उसी कला यात्रा का एक अमूल्य धरोहर है, मंदिर का मंडप कलात्मक स्तम्भों पर निर्मित है।
मंदिर के गवाक्षों पर विभिन्न धार्मिक कहानियों को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा गया है। स्तम्भों पर मानवीय एवं जानवर स्वरूप आकृतियों की अतिरिक्त घटना पल्लव को बनाया गया, मंदिर की आंतरिक सज्जा बेहद खूबसूरत है। मंदिर की छत पर बृम्हा, शिव परिवार, सूर्य, शिव विवाह, शिव भक्तों की कतारें, शिवलिंग की पूजा, विष्णु के दसावतार, कृष्णलीला, चामुंडा, विद्याधर, गंधर्व, नतृकियां, संगीतकार, गायक, मिथुनरत युगल सही एवं संतुलित आकार में उकेरे गये हैं।
मंदिर के अवशेषों में प्राप्त एक विशाल नदी की प्रतिमा से ऐसा प्रतीत होता है कि ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित यह एक शिव मंदिर था। मंदिर के अंतः भाग में दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है जिनमें - ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, गणेश, काली एवं विष्णु के अवतारों का अंकन प्रमुख है। इनके अतिरिक्त दीवारों पर भागवत, रामायण एवं पुराणों से संबंधित प्रतिमाओं को उत्कीर्ण किया गया है जो उस काल की कला एवं संस्कृति को प्रतिबिम्बित करती है।
मंदिर कला के विभिन्न लक्षणों के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका निर्माण 10 वीं शती ईस्वी में किया गया था। कालान्तर में इस मंदिर को गोहद के जाट राणाओं(19 वीं शती ई.) द्वारा गढ़ी में परिवर्तित कर दिया गया है। युद्ध के दौरान गढ़ी पर तोप के गोले से प्रहार कर गढ़ी को तोड़ा गया था। तोप के उक्त गोले आज भी गढ़े हुए देखे जा सकते हैं।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रूपनाथ-सम्राट अशोक का शिलालेख

:ःः तिगवां (पूर्व गुप्तकालीन विष्णु मंदिर)ःःःVISHNU MANDIR कटनी पूर्व जिला जबलपुर (म0प्र0)

मंदसौर में यशोधर्मन का विजय [ Yashodharman's Victory Pillar in Mandsaur]