तेवर (प्राचीन नाम त्रिपुरी या त्रिपुर)जबलपुर
तेवर (प्राचीन नाम त्रिपुरी या त्रिपुर)
जबलपुर शहर से 12 किलोमीटर दूर जबलपुर-भेड़ाघाट सड़क मार्ग पर तेवर गांव स्थित है। जिसका प्राचीन नाम त्रिपुरी है। जिसका उल्लेख महाभारत तथा अनेक पुराणों, जैन और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में मिलता है। अभी भी बीच गांव मंे त्रिपुरेश्वर महादेव की मूर्ति विद्यमान है।
उत्खन्न में प्रागेतिहासिक काल ईसा पूर्व लगभग 1000 वर्ष के मानव सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुये है। कलचुरीकाल 825 ईसा से 1176 ईसा के दौरान त्रिपुरी कलचुरी राजाओं की राजधानी रहा है। उत्खनन में प्राप्त मिट्टी के बर्तनांे, आभूषणों, औजारों, मकानों, घरों में उपस्थित कुओं के अवशेषों से यह दर्शित होता है कि वह पूर्व में समृद्धशाली नगर था। ईसा के पूर्व तीसरी शताब्दी के सिक्के में भी ब्राम्ही लिपि से त्रिपुरी नाम का उल्लेख मिलता है। 5 वीं शताब्दी के एक ताम्रपत्र के लेख मंे भी त्रिपुरी का नाम आता है। उस समय परिव्राजक महराजाओं का राज था तत्पश्चात् यह कलुचिरी राजाओं के हाथ चला गया। नागपुर के भोंसला राजा ने तेवर व अन्य चार गंाव एक महाराष्ट्रीय ब्राहम्ण को जागीर में दिये थे।ेे
वर्तमान में भी सम्पूर्ण तेवर गांव के जगह-जगह पुराने मंदिरों के भग्नावेश और शिल्प कृतियां मिलती है। त्रिपुरी स्थित पुराने भग्नावेश मंदिरांे के मूर्तियों जबलपुर शहर अलग-अलग स्थानों पर मंदिर स्थापित किये गये है। जबलपुर स्थित रानी दुर्गावती स्थित संग्रहालय में कुछ मूर्तियों को सुरक्षित रखा गया है।
बाबड़ी- पुराने पत्थरों से बनी हुई एक बड़ी बाबड़ी उत्खन्न के दौरान प्राप्त हुई है जो कि स्वास्तिकार की है और उसमें चारों ओर सीढ़िया और इसके चारों पाश्वों में प्रत्येक के मध्य कलचुरी नरेश के शिलालेख लगे हुये थे और उन शिलालेखों को हटाया जाकर सुरक्षित रखा गया है। गांव के लोग आज भी इस बाबड़ी से पानी प्राप्त करते है। बाबड़ी में ही खैरमाई मंदिर स्थित है, जिसमें शिल्पाकृतियां टूटी हुई हालत में रखी हुई है। भगवान शिव द्वारा अंधकासुर नामक राक्षस के वध का शिलापटट् भी बाबड़ी स्थित खैरमाई मंे रखा हुआ है।
अंधकासुर शिलापटट् (ज्तपचनतप ज्पतजींचंजजंए ज्मूंत) स्थित ग्राम तेवर जबलुपर
पुरानी बाबड़ी स्थित खेरमाई में 2 फुट 4 इंच वर्गाकार के शिलापटट् में भगवान शिव द्वारा अंधकासुर वध का पौराणिक दृश्य उत्कीर्ण किया गया है। भगवान शिव का बायां उपर उठा हुआ पैर जमीन पर धराशाही अंधकासुर के सिर को रौंदता हुआ दिखाया गया है उनके चारों हाथों में से उपरी हाथ में डमरू, निचले बायें में कपाल, शेष दो हाथों में त्रिशूल लिये हुये जिसके उपर अंधकासुर का सिर टंगा हुआ है।
जबलपुर शहर से 12 किलोमीटर दूर जबलपुर-भेड़ाघाट सड़क मार्ग पर तेवर गांव स्थित है। जिसका प्राचीन नाम त्रिपुरी है। जिसका उल्लेख महाभारत तथा अनेक पुराणों, जैन और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में मिलता है। अभी भी बीच गांव मंे त्रिपुरेश्वर महादेव की मूर्ति विद्यमान है।
उत्खन्न में प्रागेतिहासिक काल ईसा पूर्व लगभग 1000 वर्ष के मानव सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुये है। कलचुरीकाल 825 ईसा से 1176 ईसा के दौरान त्रिपुरी कलचुरी राजाओं की राजधानी रहा है। उत्खनन में प्राप्त मिट्टी के बर्तनांे, आभूषणों, औजारों, मकानों, घरों में उपस्थित कुओं के अवशेषों से यह दर्शित होता है कि वह पूर्व में समृद्धशाली नगर था। ईसा के पूर्व तीसरी शताब्दी के सिक्के में भी ब्राम्ही लिपि से त्रिपुरी नाम का उल्लेख मिलता है। 5 वीं शताब्दी के एक ताम्रपत्र के लेख मंे भी त्रिपुरी का नाम आता है। उस समय परिव्राजक महराजाओं का राज था तत्पश्चात् यह कलुचिरी राजाओं के हाथ चला गया। नागपुर के भोंसला राजा ने तेवर व अन्य चार गंाव एक महाराष्ट्रीय ब्राहम्ण को जागीर में दिये थे।ेे
वर्तमान में भी सम्पूर्ण तेवर गांव के जगह-जगह पुराने मंदिरों के भग्नावेश और शिल्प कृतियां मिलती है। त्रिपुरी स्थित पुराने भग्नावेश मंदिरांे के मूर्तियों जबलपुर शहर अलग-अलग स्थानों पर मंदिर स्थापित किये गये है। जबलपुर स्थित रानी दुर्गावती स्थित संग्रहालय में कुछ मूर्तियों को सुरक्षित रखा गया है।
बाबड़ी- पुराने पत्थरों से बनी हुई एक बड़ी बाबड़ी उत्खन्न के दौरान प्राप्त हुई है जो कि स्वास्तिकार की है और उसमें चारों ओर सीढ़िया और इसके चारों पाश्वों में प्रत्येक के मध्य कलचुरी नरेश के शिलालेख लगे हुये थे और उन शिलालेखों को हटाया जाकर सुरक्षित रखा गया है। गांव के लोग आज भी इस बाबड़ी से पानी प्राप्त करते है। बाबड़ी में ही खैरमाई मंदिर स्थित है, जिसमें शिल्पाकृतियां टूटी हुई हालत में रखी हुई है। भगवान शिव द्वारा अंधकासुर नामक राक्षस के वध का शिलापटट् भी बाबड़ी स्थित खैरमाई मंे रखा हुआ है।
अंधकासुर शिलापटट् (ज्तपचनतप ज्पतजींचंजजंए ज्मूंत) स्थित ग्राम तेवर जबलुपर
पुरानी बाबड़ी स्थित खेरमाई में 2 फुट 4 इंच वर्गाकार के शिलापटट् में भगवान शिव द्वारा अंधकासुर वध का पौराणिक दृश्य उत्कीर्ण किया गया है। भगवान शिव का बायां उपर उठा हुआ पैर जमीन पर धराशाही अंधकासुर के सिर को रौंदता हुआ दिखाया गया है उनके चारों हाथों में से उपरी हाथ में डमरू, निचले बायें में कपाल, शेष दो हाथों में त्रिशूल लिये हुये जिसके उपर अंधकासुर का सिर टंगा हुआ है।
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