:ःः तिगवां (पूर्व गुप्तकालीन विष्णु मंदिर)ःःःVISHNU MANDIR कटनी पूर्व जिला जबलपुर (म0प्र0)
ग्राम तिगवां में गुप्तकाल के पूर्व का विष्णु मंदिर स्थित है तिगंवा ग्राम तहसील बहोरीबंद नया जिला कटनी पुराना जिला जबलपुर में स्थित है जो कि जबलपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। ग्राम में सड़क मार्ग से जबलपुर मिर्जापुर राजमार्ग स्थित सीहोरा से तथा सागर जबलपुर मार्ग से कटंगी होकर परिवहन की सुविधा उपलब्ध है।
मंदिर मूलतः पत्थरों से बना 12 फुट 9 इंच का वर्गाकार छोटा मंदिर था, जो करीब डेढ हजार वर्ष पूर्व का है। जिसकी छत गुप्त शैली के अनुसार सपाट थी। गंगा और यमुना की प्रतिमायें मुख्य मंदिर के द्वार के दोनों ओर पाश्वों मंे है जो कि गुप्त शैली निर्माण के विशेषता है। मंदिर पांचवी शताब्दी या उसके पूर्व का है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, जो कि 8 फुट ग साढ़े सात फुट का है।
विष्णु मंदिर जो वर्तमान में कंकाली देवी का मंदिर कहा जाता है क्योंकि मंदिर के मुख्य द्वार पर बाई ओर एक शिलापट के उपरी भाग पर कंकाली देवी की मूर्ति है। दाहिने शिला पट पर एक काली की मूर्ति है, कंकाली देवी के नीचे अनन्त नामक सर्प पर लेटे हुये विष्णु की प्रतिमा है जिनकी नाभि से निकले हुये कमल पर ब्रम्हा जी विराजते है। मंदिर मूलस्वरूप में नहीं है। इसी संरचना में समय समय पर परिवर्तन किया गया है। दूसरी ओर की दीवाल में जैनी तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की पत्थर की मूर्ति स्थित है। मंदिर के अंदर सामने दीवाल पर विष्णु के नृसिंह अवतार की मूर्ति दीवाल में गड़ी है।
मंदिर के एक स्तम्भ पर कानकुब्ज के उमदेव नामक तीर्थयात्री का लेख है है जिसने सेतभद्र के मंदिर मंे उपासना की थी इसकी लिपि आंठवी शताब्दी की है।
इसके निकट एक दूसरा मंदिर है जो दुर्गा का कहलाता है जिसका निर्माण पुराने मंदिरों के भग्नावेशों से किया गया है। इसमें अष्टभुजी दुर्गा की मूर्ति है स्थानीय लोग उसको शारदा माता मंदिर भी कहते है। मंदिर परिसर में पुराने मंदिरों के खंडित भग्नावेश और मूर्तियां रखे हुये है। इस मंदिर के उत्तर में एक अलकृंत पाषाणों का द्वार है जो गुप्त शैली के एक अन्य मंदिर का एक मात्र अवशिष्ट भाग है। वर्तमान में मंदिर परिसर को पत्थरों की दीवाल से घेरकर संरक्षित किया गया है मंदिर परिसर में जगह-जगह बहुत से खंडित मंदिरों के अवशेष व मूर्तियाॅं पड़ी है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसे पुरातत्व महत्व की घोषित किया जाकर संरक्षित किया गया है।
मंदिर मूलतः पत्थरों से बना 12 फुट 9 इंच का वर्गाकार छोटा मंदिर था, जो करीब डेढ हजार वर्ष पूर्व का है। जिसकी छत गुप्त शैली के अनुसार सपाट थी। गंगा और यमुना की प्रतिमायें मुख्य मंदिर के द्वार के दोनों ओर पाश्वों मंे है जो कि गुप्त शैली निर्माण के विशेषता है। मंदिर पांचवी शताब्दी या उसके पूर्व का है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, जो कि 8 फुट ग साढ़े सात फुट का है।
विष्णु मंदिर जो वर्तमान में कंकाली देवी का मंदिर कहा जाता है क्योंकि मंदिर के मुख्य द्वार पर बाई ओर एक शिलापट के उपरी भाग पर कंकाली देवी की मूर्ति है। दाहिने शिला पट पर एक काली की मूर्ति है, कंकाली देवी के नीचे अनन्त नामक सर्प पर लेटे हुये विष्णु की प्रतिमा है जिनकी नाभि से निकले हुये कमल पर ब्रम्हा जी विराजते है। मंदिर मूलस्वरूप में नहीं है। इसी संरचना में समय समय पर परिवर्तन किया गया है। दूसरी ओर की दीवाल में जैनी तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की पत्थर की मूर्ति स्थित है। मंदिर के अंदर सामने दीवाल पर विष्णु के नृसिंह अवतार की मूर्ति दीवाल में गड़ी है।
मंदिर के एक स्तम्भ पर कानकुब्ज के उमदेव नामक तीर्थयात्री का लेख है है जिसने सेतभद्र के मंदिर मंे उपासना की थी इसकी लिपि आंठवी शताब्दी की है।
इसके निकट एक दूसरा मंदिर है जो दुर्गा का कहलाता है जिसका निर्माण पुराने मंदिरों के भग्नावेशों से किया गया है। इसमें अष्टभुजी दुर्गा की मूर्ति है स्थानीय लोग उसको शारदा माता मंदिर भी कहते है। मंदिर परिसर में पुराने मंदिरों के खंडित भग्नावेश और मूर्तियां रखे हुये है। इस मंदिर के उत्तर में एक अलकृंत पाषाणों का द्वार है जो गुप्त शैली के एक अन्य मंदिर का एक मात्र अवशिष्ट भाग है। वर्तमान में मंदिर परिसर को पत्थरों की दीवाल से घेरकर संरक्षित किया गया है मंदिर परिसर में जगह-जगह बहुत से खंडित मंदिरों के अवशेष व मूर्तियाॅं पड़ी है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसे पुरातत्व महत्व की घोषित किया जाकर संरक्षित किया गया है।
Mujhe he information Marathi me chahihe
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