अटेर किला, भिण्ड
अटेर किला, भिण्ड
मध्यप्रदेश में अटेर का किला भिण्ड जिले से 35 किमी और ग्वालियर जिले से 115 किमी दूर चम्बल नदी के किनारे देवगिरि पहाड़ी पर उत्तर प्रदेश राज्य की आगरा जिले की सीमा के पास स्थित है। किले का निर्माण भदावर राजा बदनसिंह देवजी द्वारा 1644ई. में प्रारंभ कराया था, जिसे उनके पुत्र महासिंह देवजी द्वारा 1668ई. में पूर्ण कराया था। इसप्रकार अटेर का किला एक मध्ययुगीन किला है। अटेर किले को देवगिरि दुर्ग भी कहते हैं ।
अटेर का किला हिन्दू और मुगल स्थापत्य कला से निर्मित है। किले के निर्माण में ईंट मिटटी और चूने का उपयोग किया गया है। किले की दीवालें मजबूत है तथा उनकी उंचाइयां अधिक हैं। किले के मुख्य भाग में प्रवेश के तीन गेट से होकर किया जा सकता है। किले में राजामहल, रानीमहल, 12 खंबा महल, हथियापोर, सात खंडा मंदिर और खूनी दरवाजा, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शिवमंदिर, प्रमुख आकर्षण है।
किले में मुख्य द्वार से प्रवेश के बाद खूनी दरवाजा स्थित है। खूनी दरवाजे का रंग लाल है। भदावर राजाओं के समय खूनी दरवाजे के उपर भेड़ का सिर काटकर रखा जाता था, जिससे दरवाजे के नीचे रखे कटोरे में ताजा खून की बूंदें टपकती रहती थीं। राज्य कार्य से संबंधित सैन्य अधिकारी और गुप्तचर खून से तिलक करने के बाद राजा से मिलते थे।
दिल्ली एवं आगरा निकट स्थित होने के कारण अटेर का किला मुगल काल से समारिक महत्व का है किले पर भदावर राजाओं और मराठाओं का आधिपत्य रहा है। मराठा सरदार सिंधिया द्वारा किले पर आधिपत्य करने के उपरांत किले का उपरी भाग राजामहल का, रानीमहल का पुर्ननिर्माण मराठा शैली में कराया गया है।
अटेर किले में स्थित देवी-देवताओं एवं किले के निर्माता भदावर राजा बदन सिंह की मूर्तियां वर्तमान में ग्वालियर किले में उपर स्थित भारत सरकार के संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं, जिन्हें आम जनता द्वारा देखा जा सकता है।
किले में दीवालों पर रंग-बिरंगी चित्रकारी की गई है, जिसमें राजपूत, मुगल और यूरोपियन प्रभाव हैं। किले में तलघर में खजाने की खोज के कारण स्थानीय लोगों द्वारा खुदाई की गई है। वर्तमान में किला भारत सरकार के पुरातत्व के अधीन संरक्षित है व अधिकांश भाग खंडित है और जीर्णोधार का कार्य चल रहा है।
------योगेश कुमार गुप्ता
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