भरहुत स्तूप

 
भरहुत मध्यप्रदेश के सतना जिले में सतना रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है। भरहुत में शुगकालीन ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में निर्मित भव्य बौद्ध स्तूप विद्यमान था जिसके चारों ओर वेदिका एवं तोरणद्वार थे। वर्तमान में बौद्ध स्तूप के टूटे हुये हिस्से भरहुत में जगह-जगह खुदाई में प्राप्त होते हैं। मौके पर कोई बौद्ध स्तूप उपलब्ध नहीं है केवल कुछ अवशेष विद्यमान हैं। देखने पर लगभग 50 से 75 फीट उंचाई का बौद्ध स्तूप निर्मित होगा यह अनुमान लगाया जा सकता है।
 
भरहुत के कला अवशेष, स्तूप में प्रयुक्त विभिन्न शिल्प/वास्तुखण्ड का सर्वाधिक संग्रह कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में किया गया है। इसके अलावा इलाहाबाद के नगर निगम संग्रहालय, सतना स्थित रामवन संग्रहालय और राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में भरहुत में निर्मित स्तूप के खण्डहर तथा अवशेष उपलब्ध हैं और वर्तमान प्रदर्शित हैं।
 
विशिष्ट लक्षण-
 
कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में उपलब्ध और प्राप्त खण्डहर एवं अवशेषों से यह स्पष्ट है कि छैनी तथा हथोड़ी का उपयोग कर अत्यंत बारीक एवं उत्कर्ष चित्रांकन प्रस्तर पर किया गया है। भरहुत के प्राप्त अवशेषों में बुद्ध की पूर्व जन्म की जातक कथाओं के दृश्य तथा वृक्ष, वेदिकायें, पुष्प, जानवरों की आकृतियां आदि रेखांकित कर बनाई गई हैं। बुद्ध के जीवन से संबंधित दृश्यांकन यथा मायादेवी का स्वप्न, श्रावस्ती का चमत्कार, जेतवन का उपहार, बुद्ध की पूजा करते हुए ऐरावत के अतिरिक्त बुद्ध के पूर्व जीवन पर आधारित जातक कथाएं जैसे महाकपि, विदुरपण्डित, शुचि, छदन्त और महाजनक जातक आदि का अंकन भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
 
स्तूप की स्थापत्य कला- प्रारंभिक अवस्था में इस स्तूप में ईंट से बने अण्ड एवं मधि का भाग था, जिसके चारों ओर वेदिका थी। वेदिका में चार तोरणद्वार थे, अण्ड के ऊपरी भाग में हर्मिका तथा उसके मध्य में त्रिछत्र बने थे। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यहां के तोरणद्वार एवं वेदिका अन्य स्तूपों की तुलना में अत्यधिक अलंकृत हैं। वेदिका स्तंभों के मध्य में बुद्ध एवं उनके पूर्व जन्मों के जीवन से संबंधित कथाओं का अंकन है। चारों दिशाओं में बने तोरणद्वारों में वर्गाकार आधार के साथ दो ऊंचे स्तंभ अष्टकोणीय स्तंभ, दण्ड, घंटा अथवा कलश आकार के स्तंभ शीर्ष बने हैं। जिनके ऊपर पीठ से पीठ सटाए हुए बैठी हुई सिंहाकृतियां हैं। स्तंभों के ऊपर तीन समानांतर प्रस्तर शिलाएं है, जिनके दोनों छोर बाहर की ओर निकले हुए गोलाकर आकृति में हैं। सबसे ऊपरी शिला पर बेलबूटों के ऊपर धर्मचक्र अंकित है। इसके दोनों ओर त्रिरत्न हैं। उष्णीष प्रस्तर पर अलंकृत क्रमिक पट्टिकाएं विशेष रूचि की हैं, जिन पर विभिन्न योद्धाओं के साथ एक विदेशी आकृति को रक्षक के रूप में दर्शाया गया हैं। वेदिका के ऊपर खरोष्ठी लिपि में प्राप्त अभिलेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि कारीगरों पर उत्तर पश्चिम क्षेत्र का प्रभाव था।
  

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