ग्वालियर दुर्ग और मानसिंह महल, ग्वालियर ;थ्व्त्ज् व्थ् ळॅ।स्प्व्त् - ड।भ्।स् व्थ् ड।छैप्छळभ्ए ळॅ।स्प्व्त्द्ध
ग्वालियर दुर्ग और मानसिंह महल, ग्वालियर
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बलुए पत्थर की सीधी चट्टानों पर खड़ा हुआ ग्वालियर दुर्ग का निर्माण गोपांचल पर्वत पर किया गया है, जिससे संपूर्ण ग्वालियर शहर उंचाई से देखा जा सकता है। यह महान घटनाओं, कारागार - सजाओं, युद्धों और जौहरों का मूक साक्षी रहा है। एक खड़ी सड़क ऊपर की ओर इस दुर्ग को जाती है जिसके किनारों पर चट्टानों में से काटकर तराशी गई जैनधर्म से संबंधित तीर्थंकर महावीर, तीर्थंकर पाश्र्वनाथ आदि की निर्माण किया गया है।
दूर लंबाई दो मील और ऊॅंचाई 35 फुट है। इसकी कीर्ति भारत वर्ष के अपराजेय दुर्ग की है। इसके निराले शानदार स्वरूप को देखकर ही बाबर ने इसे भारत के दुर्गों का मोती कहा था। ग्वालियर के किले पर तोमर वंश, जाट राजाओं, मुगल शासकों, अंग्रेजों और मराठाओं का आधिपत्य रहा है।
ग्वालियर किले पर मानसिंह महल स्थित है। यह राजमहल हिन्दू स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है इस महल का निर्माण 1488 से 1516 ई. के बीच में तोमर राजा मानसिंह तोमर द्वारा करवाया गया था। महल का निर्माण गोपालचल पर्वत पर कराया गया था इस महल में कुल चार तल है जिसमें दो कोष्ठकों पर आधारित कई कक्ष एवं दो खुले प्रांगण हैं। नीचे के तलों में झूलाघर, केसर कुंड एवं फांसीघर है। महल का बाहरी पाश्र्व कई प्रकार की सुन्दर चित्रकारी, विभिन्न रंगों की टाइल्स एवं आकृतियों जैसे मानवाकृति, बत्तख, हाथी, मोर, शेर, केलों के पत्तों एवं आकर्षक गुम्बदों से सुसज्जित है। भीतर, प्रासाद के कक्ष अब अपनी उस पुरातन शोभा से रहित और निरालंकृत हैं जो सदियों के गुजरते जाने की साक्षी दे रहे हैं। पत्थर की सुंदर जालियों वाले महल के विशाल कक्ष किसी समय संगीत भवन हुआ करते थे और इन पत्थर के झरोखों के पीछे बैठकर राजमहल की रानियां उस समय के महान आचार्यों और संगीत विशारदों से संगीत सीखती थीं
इस राजमहल का निर्माण किले की उंची दीवार से सटाकर किया गया है जिसकी उंचाई जमीन की सतह से 300 फुट है। 16वीं शताब्दी में ग्वालियर किले पर मुगलों का आधिपत्य होने के बाद इस महल का उपयोग शाही जेल के रूप में किया जाने लगा था। सम्राट औरंगजेब ने अपने भाई मुराद को यही कैद किया था। बाद में यहीं उसे फांसी दे दी गई।
सन् 1892 ई. में मराठा राजा सिंधिया ने महल में रंगरोगन एवं मरम्मत का कार्य कराया है। सामारिक दृष्टि से ग्वालियर का किला और मानसिंह महल हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है।
जौहर-सरोवर है जहां राजपूत परंपरा के अनुसार युद्ध में पतियों की पराजय के बाद रानियां सामूहिक रूप से सती हो गई। ग्वालियर के इतिहास एवं मानसिंह महल के इतिहास के संबंध में ध्वनि और प्रकाश के रंगारंग कार्यक्रम प्रतिदिन आयोजित किया जाता है। वर्तमान में यह महल भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के सरंक्षण में है। विभाग द्वारा मरम्मत और संरक्षण का कार्य कराया जाता है।
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