बुद्ध प्रतिमाः उद्भव और विकास

 बुद्ध प्रतिमाः उद्भव और विकास

              बुद्ध के जीवनकाल में उनकी मूर्तियां नही बनाई गई। बुद्ध मूर्ति पूजा कुषाण काल से पूर्व मुख्यतः स्तूप, चैत्य तथा बुद्ध एवं उनके जीवन की घटनाओं के जैसे बुद्ध के चरण, बोधिवृक्ष और धर्म चक्र आदि प्रतीक रूप में होने के प्रमाण मिलते हैं। बुद्ध का मानव आकृति में अंकन राजा कनिष्क के समय कुषाण काल में प्रारंभ हुआ हैं। राजा कनिष्क के शासन काल में प्रारंभ में बुद्ध के मानव अवतार की प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर में कौशाम्बी से बोधिसत्व की प्राप्त हुई थी। कनिष्क के सिक्के पर भी बुद्ध की प्रतिमा का चित्र और कनिष्क का नाम ग्रीक लिपि में लिखा हुआ हैं। बुद्ध के मानव आकार की प्रतिमाओं में मथुरा, गांधार शैली, अमरावती शैली (आंध्र प्रदेश), पाली(श्रीलंका) वर्मा, थाईलैण्ड और तिब्बत में प्रभावशील थी। गांधार शैली में आधुनिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बौद्ध की प्रतिमा हैं। गुप्तकाल चैथी और छठवी शताब्दी बुद्ध मूर्तिकला का स्वर्ण युग था जिसमें सांची, सारनाथ, अजंता एलोरा, नालंदा, गांधार, तक्षशिला आदि में बुद्ध की उत्कृष्ट मूर्तियां बनाई गई है। 

वर्तमान में बौद्ध धर्म जापान, दक्षिण पूर्व एशिया के देश और भारत के कुछ क्षेत्रों में सीमित है, परंतु बौद्ध धर्म का प्रभाव संपूर्ण संसार में पाया जाता हैं। विश्व के सभी देशों में विभिन्न रूप और आकार में बुद्ध मूर्तियों का प्रचलन हैं। वर्तमान में बौद्ध की ध्यानमग्न मूर्तियां, जिसमें नेत्र नीचे झुके हुए अहिंसा, साहिष्णुता, शांति, सौहार्द और सकारात्मकता की प्रतीक होने के कारण विश्व के सभी धर्माें के लोगों के मध्य सजावट की वस्तु के रूप में प्रदर्शित होती हैं। 

योगेश कुमार गुप्ता
































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