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ऐतिहासिक ऐरण जिला सागर म.प्र.

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ऐतिहासिक ऐरण जिला सागर म.प्र. म.प्र. के सागर जिले में बीना तहसील में बीना नदी से लगा हुआ ऐरण गाँव स्थित है। सड़क मार्ग से सागर बीना और मण्डी बामौरा होते हुये तथा सागर से खुरई होते हुये ऐरण पहुंचा जा सकता है। ऐरण प्राचीन महापथ जो कि उज्जैन से चलकर सांची तक जाता था, के समीप मार्ग पर स्थित है। उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं सिक्कें आदि से यह पता चलता है कि ऐरण स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित था। और ऐरण में ईसा पूर्व सभ्यता के अवशेष तथा मूर्तिशिल्प प्राप्त हुये है। जिससे यह प्रमाणित होता है कि ऐरण प्राचीन स्वतंत्र राज्य के रूप में था। ऐरण से भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की मूर्ति प्राप्त हुई जिससे यह स्थापित होता है कि भगवान विष्णु के अनुयायी का लंबे समय तक ऐरण क्षेत्र में शासन रहा। वर्तमान में ऐरण गांव में महावाराह की मूर्ति, विष्णु मूर्ति तथा नृसिंह की मूर्ति समानांतर पृथक-पृथक चबूतरों पर स्थापित है। नृसिंह की मूर्ति ऐसा प्रतीत होता है कि मूर्तियों के सामने दो स्तम्भ ध्वज स्तंभ तथा दीपस्तम्भ स्थापित है स्तंभों के समानांतर ही एक गोल स्थल है जो खंडित अवस्था

सैरा नृत्य जिला सागर मध्यप्रदेश

सैरा नृत्य जिला सागर मध्यप्रदेश बुन्देलखण्ड  क्षेत्र जिसमें वर्तमान मध्यप्रदेश राज्य के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया तथा उत्तरप्रदेश राज्य के झांसी, ललितपुर, महोबा के क्षेत्र सम्मिलित  हैं।  बुन्देली राजाओं के गुणगान में वीररस के गीतों पर सैरा लोक नृत्य किया जाता है। यह नृत्य पुरूष प्रधान है जिसमें भाग लेने वाले युवक हाथ की लंबाई का बंास का डण्डा एक हाथ में और दूसरे हाथ में परम्परागत गले पर डाले जाने वाला गमछा या तौलिया का प्रयोग किया जाता है।  नृत्य करने वाले पुरूष गोल  घेरे में घूमघूम कर ढोलक,नगडि़या तथा झाॅझ के शोरों के साथ नृत्य करते हैं और एक साथ हाथ में लिये डण्डों को आपस में टकराकर या जमीन से टकराकर मधुर आवाज उत्पन्न करते हैं। सैरा बुन्देलखण्ड में सभी समाज के वर्गों में लोकप्रिय है तथा रक्षाबंधन के त्यौहार के आसपास किया जाता है। वाद्ययंत्र लिये हुए व्यक्ति बीच में उपस्थित रहते हैं और उनके चारेां ओर गोल घेरे में नृतक गीत गाते हुए और झूमते हुए नृत्य करते हैं। संलग्न- वीडियो में सैरा नृत्य करते हुए नृतकों को दर्शाया गया है  जो कि सागर जिले की रानगिर स्थित हरसिद

सिद्धपीठ बैलौन मां उत्तरप्रदेश

सिद्धपीठ बैलौन मां उत्तरप्रदेश उत्तरप्रदेश राज्य के बुलंद शहर की तहसील अनूप शहर में थाना नारौला परिक्षेत्र जो कि अणु शक्ति केन्द्र स्थित होने के कारण प्रसिद्ध है, के बैलौन गांव में स्थित है। आगरा अलीगढ़ सड़क मार्ग से नारौरा, रामपुर, मुरदाबाद रोडवेज व प्राईवेट बस से सड़क मार्ग पर और अतरौली होकर नारौरा रामपुर मुरादाबाद, चंदौसी, बिजनौर मार्ग पर जाने वाली बसें जो कि नारौरा में रूकती हैं से बैलौन गांव सड़क मार्ग से पहुॅचा जा सकता है प्रसिद्ध अणु शक्ति केन्द्र नारौरा से लगभग 4 किलो मीटर दूरी पर बैलौन गांव स्थित है। रेलवे स्टेशन बैलौन से मात्र 5 किलो मीटर दूर स्थित है।  अलीगढ़ और आगरा से सीधे बैलौन पहुॅचने के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है हवाई मार्ग के लिए निकट का हवाई अड्डा आगरा में स्थित है। बैलौन माॅ आदि शक्ति दुर्गा के रूप में हैं। देवी शेर पर सवार हैं जिनका एक पैर नीचे लटका हुआ है दूसरा पैर शेर की पीठ पर मुड़ा हुआ है मूर्ति लगभग पाॅच हजार वर्ष पुरानी है बैलौन माॅ की मूर्ति जमीन में दबी हुई अवस्था में प्राप्त हुई है देवी मंदिर का निर्माण लगभग पाॅंच सौ वर्ष महाराजा ग्वालियर द्वारा उन

विष्णु विग्रह मंदिर मझोली मध्यप्रदेश के जबलपुर

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  विष्णु विग्रह मंदिर मझोली मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले की सीहोरा तहसील के मझोली  गांॅव में वाराह की विशाल प्रतिमा स्थित है। सीहोरा जबलपुर मिर्जापुर राजमार्ग से जुड़ा हुआ है।  11वीं सदी में निर्मित एवं कलांतर में ध्वस्त हुए मंदिर का पुननिर्माण 17-18वीं सदी में किया गया, जिसका शिखर मूलरूप में नहीं है।  मंदिर पूर्वाभिमुख है, जिसके बाह्य भित्तियों एवं परकोटे में प्राचीन मूर्तियां जड़ी हुई है।  द्वार के सामने स्तंभ है जिस पर दशावतार का अंकन है। मंदिर के द्वार शाखाओं में मकर वाहिनी गंगा एवं कच्छप वाहिनी यमुना का चित्रण है एवं बीचोंबीच योग नारायण पदमासन में बैठे हुए हैं तथा दोनों ओर नवग्रह प्रदर्शित हैं।  मंदिर के काष्ठ कपाटों पर भी देव अलंकरण हैं। मंदिर के वर्गाकार गर्भग्रह में 11वीं सदी विष्णु के अवतार वाराह की खड़ी विशाल मूर्ति हैं जो कि काले पत्थर की बनी हुई है।  जिसके नीचे चैकी पर अमृतघट लिये शेषनाग एवं उनके पीछे उनकी पत्नि प्रदर्शित हैं। शेषनाग के ऊपर तथा वराह की थूथन के नीचे पदमासन में योग नारायण हैं। वराह के शरीर पर देव मुनि सिद्ध एवं गंधर्व अलंकृत है

विष्णु चतुष्टिका उज्जैन मध्यप्रदेश

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विष्णु चतुष्टिका उज्जैन मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश के धार्मिक नगर उज्जैन में गढ़काणिका मंदिर के पास विष्णु चतुष्टिका की प्रतिमा स्थित है जिसका निर्माण 9वीं तथा 10वीं शताब्दी में किया गया था। वर्तमान में उपरोक्त मूर्ति शिल्प को पत्थरों से निर्मित आयताकार कक्ष  में रखा गया है जिसके चारों दीवालों पर जालीदार दरवाजे लगाये गये हैं, जिससे मूर्ति की चारों स्वरूपों को देखा जा सकता है। जहाॅं मूर्ति रखी हुयी है वह स्थान मूल मंदिर नहीं है। परिसर में किसी मंदिर के खण्डित अवशेष इधर उधर जमीन में गढ़ी हुई अवस्था में स्थित हैं। पास ही लकड़ी की छत का पुराना मंदिर भी स्थित हैं। आयताकार कक्ष में विष्णु के चार स्वरूपों को प्रदर्शित करने वाली पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतिमा स्थापित है जो 93 से.मी. चैड़ी तथा 96 से.मी. ऊंची है। इस प्रतिमा में चारों ओर विष्णु के अवतारों के चार स्वरूपों सहित मुख आलेखित हैं इसलिए इसे विष्णु चतुष्टिका की संज्ञा दी गई है।  विष्णु की ये चारेां मूर्तियां किर्रीट मुकुट, श्रीवत्स, कुंडल, मयूर, कटकवलय तथा यज्ञोपवीत से अलंकृत एवं पदमासन में ह

:ःः तिगवां (पूर्व गुप्तकालीन विष्णु मंदिर)ःःःVISHNU MANDIR कटनी पूर्व जिला जबलपुर (म0प्र0)

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ग्राम तिगवां में गुप्तकाल के पूर्व का विष्णु मंदिर स्थित है तिगंवा ग्राम  तहसील बहोरीबंद नया जिला कटनी पुराना जिला जबलपुर में स्थित है जो कि जबलपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। ग्राम में सड़क मार्ग से जबलपुर मिर्जापुर राजमार्ग स्थित सीहोरा से तथा सागर जबलपुर मार्ग से कटंगी होकर परिवहन की सुविधा उपलब्ध है। मंदिर मूलतः पत्थरों से बना 12 फुट 9 इंच का वर्गाकार छोटा मंदिर था, जो करीब डेढ हजार वर्ष पूर्व का है। जिसकी छत गुप्त शैली के अनुसार सपाट थी। गंगा और यमुना की प्रतिमायें मुख्य मंदिर के द्वार के दोनों ओर पाश्वों मंे है जो कि गुप्त शैली निर्माण के विशेषता है। मंदिर पांचवी शताब्दी या उसके पूर्व का है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, जो कि 8 फुट ग साढ़े सात फुट का है। विष्णु मंदिर जो वर्तमान में कंकाली देवी का मंदिर कहा जाता है क्योंकि मंदिर के मुख्य द्वार पर बाई ओर एक शिलापट के उपरी भाग पर कंकाली देवी की मूर्ति है। दाहिने शिला पट पर एक काली की मूर्ति है, कंकाली देवी के नीचे अनन्त नामक सर्प पर लेटे हुये विष्णु की प्रतिमा है जिनकी नाभि से निकले हुये कमल पर ब्रम्हा जी विराजते है। मंदिर मूलस्

विष्णु मंदिर Vishnu Mandi, Vinayka Disstrict Sagar, M.P.

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मध्यप्रदेश राज्य के सागर जिले की बंडा तहसील में सागर मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर विनायका ग्राम में स्थित है । मंदिर तक सागर बंडा होते हुये विनायका सड़क मार्ग से राष्ट््रीय राजमार्ग क्रमांक   से पहुंचा जा सकता है । निकटतम रेलवे स्टेशन सागर है । संक्षिप्त इतिहास- विनायका के ज्ञात इतिहास में लगभग 15 वीं शताब्दी में विनायका गढा मंडला के गौड़ राजा का अधिकार था बाद में इसे ओरछा के राजा वीरसिंह देव ने ले लिया था और सन् 1730 तक छत्रसाल ने इसे मराठा पेशवा बाजीराव को दिया था मराठा शासक के राज्यपाल विनायकराव द्वारा यहां एक किले का निर्माण कराया गया था और विनायकराव के नाम पर ही ग्राम का नाम विनायका पड़ा था । बाद में 1842 में नरहट और चंद्रपुर के बुंदेला ठाकुरों द्वारा इसे लूटा गया था । 1857 में शाहगढ़ के राजा द्वारा इस पर कब्जा किया गया था 1857 की क्रांति के समय सागर से जाकर अंग्रेज मेजर लीगार्ड द्वारा विनायका पर हमला किया गया था परंतु उनकी हार हुई थी । सन् 1861 तक विनायका पाटन परगना का मुख्यालय था उसके बाद मुख्यालय बंडा में स्थानांतरित किया गया था । मंदिर-गर्भगृह- मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार ह