आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या भील खंडवा म.प्र.

आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या भील खंडवा म.प्र.

टंट्या भील का जन्म मध्यप्रदेष के खंडवा जिले के पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में संक्रांत के 12वे दिन अर्थात 26 जनवरी 1842 में हुआ था, उनकी जमीन पाटिल जमींदार के पास गिरवी थी। जिसकी ब्याज के रूप में जमींदार द्वारा जमीन पर जबरन कब्जा किया गया था। इस प्रकार परिवार, समाज और राष्ट्र पर हुये अन्याय और अत्याचार के कारण महाविद्रोही टंट्या भील का निर्माण हुआ था। आम जनता में उनकी छवि राॅबिन हुड की थी, परंतु अंग्रेजों के समर्थक सामंतवादी जमींदारों द्वारा समाज में उनकी छवि लुटेरे के रूप में प्रचलित की गई थी। उनका वास्तविक नाम टंड्रा था। अंग्रेज सरकारी अफसर और सरकार समर्थक उच्च वर्ग के लोग उनसे भयभीत रहते थे, आम जनता उन्हें टंटिया मामा कहकर बुलाते थे। उन्हें पहली बार 1874 में गिरफ्तार किया गया था और एक साल की सजा काटने के बाद उनके अपराध को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में परिवर्तित किया गया था । दूसरी बार उन्हें 1878 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार कर खंडवा जेल में रखा गया था, तीन दिन के बाद वह खंडवा जेल से भाग गये थे। बाद में इंदौर की सेना के अधिकारियों द्वारा उन्हें क्षमा करने का वादा कर गिरफ्तार किया गया था, और आम जनता का विद्रोह ना हो इसलिये उन्हें जबलपुर केंद्रीय जेल में रखा गया था। कुछ इतिहासकारों का मत है कि उन पर मुकदमा चलाया गया था और 4 दिसंबर 1889 को उन्हें फंासी की सजा दी गई थी, परंतु जबलपुर के इतिहास के जानकार डाॅ. राजकुमार गुप्ता का मत है कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें शारिरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था और उनकी हत्या की गई थी। उनके शव की इंदौर के पास स्थित पातालपानी में समाधी की गई थी ताकि आम जनता में विद्रोह नही हो सके। उनकी गिरफ्तारी ‘‘द न्यूयाॅर्क टाइम‘‘ के समाचार दिनांक 10 नवंबर 1889 को उन्हें राॅबिनहुड आॅफ इंडिया कहां गया था। इनके नाम पर हिंदी में फिल्म भी बनी है। 1878 से 1889 के मध्य आदिवासी नायक के रूप में याद थे। महु खंडवा रेलवे ट्रेक के जंगलों में सक्रिय रहे थे उन्हें वहां के आदिवासी समाज द्वारा भगवान के रूप में पूजा जाता है। 




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