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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मध्यप्रदेश में देवी दुर्गा (महिषासुर मर्दिनी) देवी प्रतिमा और उनके मूर्ति शिल्प का विवरण

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देवी दुर्गा- विष्णुधर्मोत्तर में वर्णित रूप के अनुसार दुर्गा आठ भुजा वाली सिंह पर सवार है जिनके हाथांे में शूल, चक्र, कपाल, शंख, धनुष-बाण, खड्ग, खेटक तथा पाश रहता है। या आठ भुजाओं शक्ति, बाण, शूल, खड्ग, चन्द्रबिम्ब, खेटक तथा कपाल आयुध रहते है। चार भुजा  दुर्गा स्वरूप में आगे का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में और पीछा हाथ में चक्र रहता है आगे के बांये हाथ में खेटक तथा पीछे के बांये में शंख पकड़ी रहती है और पद्मासन में खड़ी हुई या महिष की पीठ अथवा सिर पर बैठती हैं। उनका वक्षः स्थल लाल वस्त्र के द्वारा ढका रहता है जो सर्प के द्वारा बंॅंधा रहता है। महिषासुर मर्दिनी-यह दुर्गा का ही रूप है। इस रूप में वे महिषासुर के साथ युद्ध करती हुई दिखायी जाती है। वैष्णव ग्रंथों में इनको चण्डिका भी कहा जाता है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वर्णन किये अनुसार  देवी स्वर्ण  के समान शरीरधारी, त्रिनेत्र युक्त देवी  के रूप में अंकित की जाती है। जिनकी सवारी  सिंह  है और उनके बीस हाथ हैं। जिनमें दाहिनी भुजा में शूल, खड्ग, शंख, चक्र, बाण, शक्ति, वज्र, तथा डमरू रहता है। बाएॅं हाथों में नागपाश, खेटक, परशु, धनुष, घण्

नोहटा शिव मंदिर(NOHTA SHIVE MANDIR.,DAMOH MADHYA-PRADESH

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सागर जबलपुर राजमार्ग पर मुख्य सडक से लगा हुआ मध्यप्रदेश राज्य के दमोह जिले की नोहटा तहसील में स्थित है । मंदिर का निर्माण कल्चुरि राजा शैव धर्मावलंबी युवराज देव प्रथम ने अपनी प्रिय रानी नोहला के आग्रह पर 915-945 ईस्वी को कराया था इसलिये मंदिर नोहलेश्वर के नाम से भी जाना जाता है । मंदिर का कुछ हिस्सा छोडकर शेष अपने मूल स्वरूप में है  मंदिर का निर्माण लगभग 100 फुट लंबाई चैडाई के और 6 फुट उंचाई वाले चबूतरे पर किया गया है । मंदिर में प्रवेशद्वार पांच शाखाओं में विभक्त है एक चैत्य,कक्षा तथा  द्वार मंडप हैं मंडप के चार मुख्य स्तंभ हैं इस मंदिर के गर्भगृह का शिखर अलंकृत युक्त है और गर्भगृह छोटा है  जिसमें शिवलिंग स्थापित है ।। सामने वाले मंडप की छत पर वर्तमान में शिखर उपलब्ध नहीं है ।  मूर्तिशिल्प अनुपम है,शिल्पाकृतियों में बारीक नक्काशी की गई है  इसमें मातिृका मूर्तियों की अधिकता है   । मुख्य द्वार  पर शीर्ष भाग में नवग्रह की मूर्तियां हैं । पाश्र्व में दांयी ओर नर्मदा और बांयी ओर यमुना की मूर्तियां हैं ।  चबूतरे के निचले भाग पर सामने दोनों ओर चारों तरफ लक्ष्मी के आठ प्रकारों की मूर्त

सिद्धिविनायक श्री गणेश मंदिर, गणेशधाम सीहोर

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भारतवर्ष में जो स्वयंभू गणेश जी के ऐसे प्रमुख चार स्थान सिद्धपुर सिहोर सिद्धिविनायक, उज्जैन के चिन्तामन गणेश जी, रंणथम्भौर संवाई माधोपुर राजस्थान के सिद्ध गणेश और सिद्धपुर गुजरात में महागणेश है। सिद्धपुर को वर्तमान में सिहोर कहा जाता है।सिहोर जिले में जो कि भोपाल से 40 किमी दूर है, पश्चिम उत्तर में पार्वती नदी के किनारे में गोपालपुर गांव में मंदिर स्थित है। स्वयंभू प्रतिमा जमीन में आधी घंसी हुई है। जो कि श्याम वर्ण काले पत्थर की स्वर्ण के समान मूर्ति का रूप दर्शित होता है।  लगभग दो हजार वर्ष पूर्व वर्तमान उज्जैन पूर्व नाम अंवतिका के परमार वंश के राजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत 155 में मंदिर का निर्माण कराया गया था। बाद में लगभग 300 वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोदार एवं सभा मंडल का निर्माण मराठा राजा पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा कराया गया। बाद में विक्रमादित्य के पश्चात् शलिवाहक शक, राजा भोज, कृष्णदेव राय, गौड़ राजा नवल शाह और नानाजी पेशवा विट्ठू वालो द्वारा तथा 1911 में बेगम सुल्तान जहां, 1933 में नबाब हमीदउल्लाखंा, भोपाल नबाब द्वारा मंदिर में पूजा व्यवस्था की जाती रही है। उक्त

Jogiya Baba ka Sthan (Rock-cut Sculptures), Sindursi, Jabalpur

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This group of Rock-cut sculptures is called the place of Jogiya Baba. Sculptures of Narsimha, Sheshshaye Vishnu, Sthanak Vishnu and Mahishasur Mardini have been carved in the rock from left to right. 1) Dwi-Bhuji Yogi Narsimha:- This image is carved in Yogic posture. Its right hand is on the knee and the left hand is on the palthi. This is probably, an image of Narsimha. 2) Sheshshayee Vishnu: - The four-armed Vishnu is resting on a Sheshshayee having seven hoods. On the lotus arising from Nabhi is seated a three faced Brahma in padmasana. Narad holding veena in the parikar, a male figure holding a sword and the figure of Garuda with seven hoods are carved.   3) Chaturbhuji Vishnu:- The standing Chaturbhuji Vishnu holding padma, shankh, chakra etc. In his four arms figures of upasaka and upasaka with folded hands is carved at his feet. 4) Mahishasur Mardini:- The four armed goddess killing demon Mahishasur is depicted. She holds trident, sword and shield in her hands a

पंचमठा मंदिर समूह, (PACHMATHA MANDIR COMPLEX) भेड़ाघाट, जबलपुर म.प्र.

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धुंआधार के पास सड़क से लगा हुआ पंचमठा मंदिर समूह स्थित है। मंदिर क्रमांक एक पंचायतन मंदिर है। जो कि चैदवीं से पद्रहंवी शताब्दी ईसवी का है। मंदिर क्रमांक दो उपमंदिर के पीछे स्थित है जो अष्टकोणी है। मंदिर क्रमांक तीन पंचायतन मंदिर के उत्तर में स्थित है जो कि वर्गाकार है। मंदिर क्रमांक चार मुख्य सड़क के किनारे स्थित है जो कि सबसे पुराना मंदिर है। जिस पर आठवी-नौंवी-दसवीं शताब्दी का एक शिलालेख स्थापित है। उपरोक्त मंदिर विभिन्न-विभिन्न समय पर निर्मित किया गया है और जिनमंे गणेश, शिव भगवान की प्रतिमायें स्थापित है। ये मंदिर तांत्रिक साधनाओं के भी केन्द्र रहे है।   मंदिर समूह, (च्ंबीउंजीं डंदकपत ब्वउचसमग) भेड़ाघाट, जबलपुर म.प्र.

कुबेर लगभग ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दी(kuber and kuberi state museum vidish madhya pradesh)

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विदिशा में यक्ष मणिभद्र (कुबेर) और कुबेरी की विशालकाय मूिर्त प्राप्त हुई है जो कि वर्तमान में राज्य संग्रहालय विदिशा में रखी गई है कुबेर की मूर्ति लगभग दस फुट चैडी जिसका व्यास 4 फुट का होगा जो कि विदिशा में किसी कुबेर के मंदिर में स्थापित की गई होगी । अर्थशास्त्र में कौटिल्य द्वारा कुबेर के मंदिर अन्य देवताओं के साथ दुर्ग के मध्य में स्थापित कराने की व्यवस्था का उल्लेख है । सामान्यतः कुबेर को धन का देवता माना जाता है । काश्यप सरिता के अनुसार कुबेर विद्या देने वाले माने जाते थे और उपनिषदों में ब्रम्हा को यक्ष कहा गया है । संदर्भ-मध्यभारत का इतिहास लेखक-हरिहरशरण द्विवेदी मूिर्त निर्माण कला से उपरोक्त कुबेर की मूर्ति पूर्व गुप्तकाल की मानी जाती है । उपरोक्त मूर्ति के समकक्ष मणिभद्र (कुबेर) की मूर्ति जो कि ईसापूर्व दूसरी शताब्दी की है । मथुरा के राजकीय संग्रहालय में रखी हुई है ।