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ग्राम गुजर्रा , दतिया जिले म0प्र0 स्थित सम्राट अशोक का Inscription of Emperor Ashoka located in village Gujra DATIYA M.P.

 ग्राम गुजर्रा जिदतिया म0प्र0 स्थित सम्राट अशोक का शिलालेख म0प्र0 के दतिया जिले के ग्राम गुजर्रा स्थित सिद्धों की टोरिया नाम पहाड़ी की तलहटी में मौर्य सम्राट अशोक (269-232 ई.पू.) का एक महत्वपूर्ण शिलोत्कीर्ण धर्मादेश में स्थित है। दतिया-झांसी सडक मार्ग पर दतिया से लगभग 20 किमी दूर गुजर्रा गांव स्थित है जहां सडक मार्ग से पहुंचा जा सकता है। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उसे पुरातत्व विभाग का घोषित किया जाकर संरक्षित स्मारक में सम्मिलित किया है। उसे प्राकृतिक क्षरण कारकों से बचाने के लिये उस पर एक शेड का निर्माण कराया। शिलालेख ब्राह्मी लिपि तथा मागधी लिपि में है। शिलाखण्ड पर लम्बाई में लगभग एक मीटर और उंचाई में आधा मीटर के भाग में पांच पंक्तियां उत्कीर्ण किया गया है।  यह शिलालेख अभी तक प्राप्त अशोक के विभिन्न शिलालेखों में दूसरा है जिसपर सम्राट अशोक के व्यक्तिगत नाम का उल्लेख है। अशोक की शिलालेख का हिन्दी अनुवाद (एक) देवनांप्रिय प्रियदर्शन अशोक राजा की (यह एक उद्घोषणा है) (दो) मैं ढ़ाई वर्षाें (से अब तक) एक उपासक अर्थात् बुद्धे बुद्ध का एक सामान्य अनुयायी रहा हूं। (तीन) उसन

जयविलास महल और संग्रहालय ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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जयविलास महल और संग्रहालय ग्वालियर,  मध्यप्रदेश जयविलास महल सिंधिया परिवार का आवास स्थान है। इसके 35 कक्षों में जीवाजीराव सिंधिया संग्राहलय है जयविलास महल का स्थापत्य इतालवी शैली का है। जिसमें टसकन और कोरिनथियन वास्तुशैली का मेल हुआ है। महल के दरबार कक्ष में दो केंद्रीय फानूस लटके हुए हैं जिनका वजन कई टन है और जिन्हें लटकाने के पहले दस हाथियों द्वारा इस छत की मजबूती का परीक्षण कराया गया था। इसकी छत की सुनहली कढ़ाई और यहां के कलात्मक परदे, फारस के शानदार कालीन और फ्रांस और इटली का प्राचीन भव्य फर्नीचर हैं। मुख्य आकर्षणों में चांदी की एक रेलगाड़ी है जो टेबिल पर ही बनी हुई पटरियों पर घूमते हुए अपने मेहमान अतिथियों को भोजन और पेय सामग्री परोस कर उनका सत्कार किया करती थी वर्तमान में भी चालू हालत में है। यहीं इटली का बना हुआ कांच का एक भव्य पालना है जिसमें प्रत्येक जन्माष्टमी को बालकृष्ण झूलते थे। इसके अतिरिक्त सिंधिया परिवार के पूर्ववर्ती सदस्यों की अनेक व्यक्तिगत स्मृतियां और सामग्री भी यहां संकलित है। सिंधिया संग्रहालय

तानसेन समाधि, ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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तानसेन समाधि, ग्वालियर,  मध्यप्रदेश यह मकबरा प्रसिद्ध संगीत सम्राट तानसेन का है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। तानसेन अकबर के दरबार में नौं रत्नों में से एक थे। इस मकबरे के पास ही इमली का एक पेड़ है। ऐसी धारणा है कि इसकी पत्तियां चूसने से आवाज मधुर तथा सुरीली होती है। यह मकबरा स्तंभयुक्त गैलरी वाले आयताकार ऊँचे चबूतरे पर बना है और  आरंभिक मुगलकालीन वास्तुकला का नमूना है।यहां प्रतिवर्ष नवंबर - दिसंबर में उस महान संगीतकार की स्मृति में एक राष्ट्रीय संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है जो संगीत प्रेमियों के लिये एक प्रमुख आकर्षण है।

एक पत्थर की बावड़ी, ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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एक पत्थर की बावड़ी, ग्वालियर, मध्यप्रदेश ग्वालियर किले के बाहरी भाग में किले की दीवाल पर लगे हुए निचले भू-भाग पर एक पत्थर से निर्मित प्राचीन बावड़ी स्थित है। बावड़ी का निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है इसलिए इसे एक पत्थर की बावड़ी कहते हैं। बावड़ी की लम्बाई 20 फुट एवं चैड़ाई 20 फुट है। जिसमें आज भी शुद्ध जल प्राप्त होता है। बावड़ी अत्यंत प्राचीन है वर्तमान में बावड़ी में सुरक्षा की दृष्टि से लोहे का चैनल गेट लगाया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से बावड़ी में प्रवेश किया जाना वर्तमान में वर्जित है। बावड़ी के जल को आज भी प्रयोग में लाया जाता है।

गुजरी महल, जिला ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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गुजरी महल, जिला ग्वालियर, मध्यप्रदेश ग्वालियर किले के भूतल भाग में गुजरी महल स्थित है। यह प्रासाद तोमर वंश के यशस्वी राजा मानसिंह तोमर सन् 1486-1516 ई. ने अपनी प्रियतमा गूजरी रानी मृगनयनी के लिये बनवाया था। गूजरी रानी की शर्त के अनुसार राजा मानसिंह ने मृगनयनी के मैहर राई गांव जो ग्वालियर से 16 मील दूर स्थित था वहां से पाइप के द्वारा पीने का पानी लाने की व्यवस्था की थी। गूजरी महल 71 मीटर लम्बा एवं 60 मीटर चैड़ा आयताकार भवन है जिस के आंतरिक भाग में एक विशाल आॅगन है। गूजरी महल का बाहरी रूप आज भी प्रायः पूरी तरह से सुरक्षित है महल के प्रस्तर खण्डों पर खोदकर बनाई गई कलातम्क आकृतियों में हाथी, मयूर, झरोखे आदि एवं बाह्य भाग में गुम्बदाकार छत्रियों की अपनी ही विशेषता है तथा मुख्य द्वार पर निर्माण संबंधी फारसी शिलालेख लगा हुआ है सम्पूर्ण महल को रंगीन टाइल्स से अलंकृत किया गया था, कहीं-कहीं प्रस्तर पर बड़ी कलात्मक नयनाभिराम पच्चीकारी भी देखने को मिलती है। भीतरी भाग में पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना सन 1920 में श्री एम.वी.गर्दे द्वारा कराई गई थी जिसे स

चैमुख नाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

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I  चैमुख नाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश (ब्भ्।न्डन्ज्ञभ्।छ।ज्भ्म्  ज्म्डच्स्म्) चैमुख नाथ वर्तमान में पन्ना जिले की पवई तहसील के ग्राम नचना-कुठार में स्थित हैं जहां सड़क मार्ग से सतना होते हुये नौगांव तथा ग्राम सलैया होकर तथा जबलपुर से मैहर और नौगांव होते हुये सलैया होकर पहुंचा जा सकता है। इतिहास- अभिलेखीय साक्ष्यों के अभाव में चैमुख नाथ मंदिर का निर्माणकाल, कला और स्थापत्य शैली के आधार पर उत्तर गुप्त कालीन लगभग सातवीं सदी ई. का प्रतीत होता है। स्थापत्यकला- चैमुख नाथ मंदिर के गर्भगृह में एक चतुर्मुख शिवलिंग प्रतिष्ठित है, चतुर्मुख में विषपान के समय का रौद्र रूप का, दूसरा अर्द्धनारीश्वर रूप, तीसरा तपस्वी रूप और चैथा विवाह के समय श्रंृगार रूप को दर्शित करता है। शिवलिंग की उंचाई लगभग 5 फीट है और लगभग एक मीटर वर्गाकार है, जो कि एक ही प्रस्तर से बना हुआ है। वर्गाकार गर्भगृह, आच्छादित प्रदक्षिणा पथ, जालीदार खिडकी एवं अलंकृत प्रवेशद्वार युक्त है, जोकि विशेष उल्लेखनीय है। स्थापत्य खंडों एवं प्रतिमाओं पर जटिल अलंकरण गुप्तकाल की कला की विशिष्टता है जो यहां पर विशेष रूच

पार्वती मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

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पार्वती मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश(च्।त्ट।ज्प्  ज्म्डच्स्म्) पार्वती मंदिर चैमुख नाथ मंदिर के सामने एक ही परिसर में स्थित हैं। उक्त दोनों मंदिर वर्तमान में पन्ना जिले की पवई तहसील के ग्राम नचना-कुठार में स्थित हैं जहां सड़क मार्ग से सतना होते हुये नौगांव तथा ग्राम सलैया होकर तथा जबलपुर से मैहर और नौगांव होते हुये सलैया होकर पहुंचा जा सकता है। इतिहास- पार्वती मंदिर, किसी ज्ञात एवं समर्पणात्मक अभिलेख के अभाव में कला और स्थापत्य की शैलीगत विशेषता के आधार पर गुप्त कालीन(लगभग पांचवी सदी ई.) परिलक्षित होता है। स्थापत्य- मंदिर में एक वर्गाकार गर्भगृह है। मुख्यरूप से गर्भगृह के उपर एक वर्गाकार कक्ष है जो उत्तरभारत के मंदिर, स्थापत्य में पूर्व में सपाट छतों वाले मंदिर के विकसित स्थापत्य की विशेषता के रूप में देखा जाता है। मुख्य विशेषता- पूर्व के सपाट छतांे वाले मंदिरों की निर्माण शैली से भिन्न गर्भगृह के उपर शिखर का क्रमिक विकास और उत्कृष्ट कला मंदिर के प्रवेश द्वारा और प्रतिमाओं से लक्षित होता है। वर्तमान में पार्वती मंदिर के गर्भगृह में किसी देवी देवता की मूर्ति स्थापित नह

SURWAYA TEMPLE (25°20' N; 77°50'E) Shivpuri, MADHYAPRADESH

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SURWAYA TEMPLE              A Small village of Shivpuri tahsil Surwaya is situated near the Jhansi-Shivpuri road, about 22km. to the east of the District headquarters. Near the 18 th km. (at the poiht marked by a signboard)the road branches off towards the north and leads to the archaeological mounments in the Balekikh or inner enclosure of the Surwaya fort, situated on the northern outskirts of the village. The early history of Surwaya is little known. Though at present quite an insignificant village it appears to have been an important town in the mediaeval period. Judging from the style of its exensive ruins these may be assigned to the 10 th to the 16 th century A.D.1 The earlier monuments were, probably erected under the patronage of the Kachchhapaghatas or Kachhavahas of Gwalior and Narwar. A number of inscriptions refer to the Jajapellas of Narwar who succeeded the Kachahhapaghatas. One inscription, dated V.S. 1341 (A.D. 1384),