अष्टमुख शिवलिंग मन्दसौर

मन्दसौर का प्राचीन नाम दशपुर है, में अष्टमुख शिवलिंग प्राप्त हुआ था जो कि शिवमूर्ति निर्माण के इतिहास मंे अद्वितीय हैं। शिवना नदी के तट पर से इसे ग्वालियर पुरात्व विभाग के अधिकारी ने तब अपने अधिकार में लिया था। अष्टमुख शिवलिंग का व्यास चार फुट से अधिक है और उॅचाई आठ फुट के लगभग है। बाद में मन्दसौर में शिवना नदी के किनारे तापेश्वर घाट पर पशुपतिनाथ मंिदर में इसे प्राचीन मुखों को नवीन मुख बनाया जाकर स्थापित किया गया है। प्राचीन मूर्ति जो प्राप्त हुई थी उसका पुराना फोटोग्राफ क्रमांक एक है। शिवलिंग पर अत्यंत भव्य त्रिनेत्र जो अष्टमुख बने हुये है। प्राचीन शिवलिंग की फोटो से स्पष्ट है कि मुख अत्यंत सौम्य एवं सुन्दर है जटाओं की बनावट एवं कानों के आभारण पूर्व गुप्तकालीन है। अनुमान किया जाता है कि प्राचीन नगर दशपुर में किसी शिवमंदिर में उपरोक्त शिवलिंग पूर्व में स्थापित रहा था। कवि कालीदास द्वारा अपने नाटक मालविकाग्निमित्र और अभिज्ञान शाकुन्तलम् में इस अष्टमुखी शिवलिंग का वर्णन किया है। कालीदास ईसा पूर्व 57 के मालवगणधिपति विक्रमादित्य के समकालीन थे इसलिये उपरोक्त अष्टमुखी शिवलिंग का निर्माण पूर्व गुप्तकालीन है। संदर्भ-मध्यभारत का इतिहास, हरिहरनिवास द्विवेद्धी, प्रकाशन-1956
           



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