अशोक स्तम्भ ,भोपाल बाग उमराव दूल्हा स्तम्भ भोपाल(ASHOKA PILLAIR,BAG UMRAO DULHA 4-5 CEN..MAURYA Era)

  अशोक स्भोपाल में ऐशबाग स्टेडियम के पास उमराव दूल्हा बाग क्षेत्र में गुप्तकालीन पाषाण(पत्थर)स्तम्भ  अशोक स्तम्भ सड़क के बीचो-बीच चबूतरे पर विद्यमान है। यह स्तम्भ सन् 1880 में भोपाल की शाहजहां बेगम ने भोपाल या उसके आसपास स्थित किसी विष्णु मंदिर से यहां लाकर स्थापित किया था।
स्तम्भ 20 फुट लंबा है जिसके शीर्ष पर उल्टे कमल पुष्प का अंकन है। शीर्ष के चारों ओर लोहे के हुक लगे है जो कि परिवर्तीकाल में इस स्तम्भ को लेम्प पोस्ट के रूप में उपयोग में लाये जाने को इंगित करते है। स्तम्भ का ढाई फुट अधोभाग खुरदुरा है इसके उपर के भाग में ओपदार चमकदार पालिश है जिसके मध्य भाग में शंखलिपि का लेख है । कतिपय विद्धान इसे मौर्ययुगीन मानते है। वस्तुतः स्तम्भ गुप्तकाल का है क्योंकि उपरोक्त स्तम्भ में अशोक के काल के निर्मित स्तम्भों की समानता मिलती है जैसे कि स्तंभ सादा नुकीला एवं चिकना है। लता पुष्प आदि से विभक्त एवं अंलकृत है स्तम्भ का शीर्ष भाग टूट गया है जिस पर सिंह, घोड़ा अथवा हाथी अथवा वृषभ आदि में से कोई एक मूर्ति रही होगी। स्तम्भ का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है और पाषाण पर जो लेप किया गया है वह इस प्रकार से किया गया है कि स्तम्भ धातु निर्मित सा आज भी लगता है । स्तम्भ चैथी-पांचवी शताब्दी का गुप्तकालीन है । वर्तमान में स्तम्भ सड़क के बीचों बीच चैराहे पर स्थित होने के कारण स्तम्भ जिस चबूतरे पर बना है उस पर आम लोग बैठने के लिये उपयोग करते हैं ।
बाग उमराव दूल्हा क्षेत्र भोपाल नबाबी दौर में दस बारह एकड़ में फैला हुआ एक उन्नत और समृद्ध बाग था जिसमें नबाब परिवार के सदस्यों के रहने के लिये बारादरी (बारह दरवाजों के मकान) एक से अधिक संख्या में स्थित थे। उपरोक्त स्तम्भ बारादरी के बीच में स्थापित किया गया था । स्तम्भ के पास स्नानगार संगमरमर के बने हुये थे जो कि मुगलवास्तु कला के सुन्दर नमूने थे स्नानगार सन् 1950-51 तक बना हुआ था वर्तमान में नष्ट हो गया है। स्तम्भ का उपयोग प्रकाश स्तम्भ के रूप में बारादरी के पास स्थित स्नानागार में प्रकाश के लिये किया जाता था ।
तम्भ ,भोपाल बाग उमराव दूल्हा स्तम्भ भोपाल

           












टिप्पणियाँ

  1. दुर्भाग्य से इतना महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व के स्तंभ को मध्यम प्रदेश शासन द्वारा उपेक्षा किया जा रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों ने भी कोई सुरक्षा का उपाय नहीं किए हैं। स्थानीय इतिहास कारों ने भी अपने भूमिका का निर्वाह नहीं किया है।

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