दशावतार मंदिर देवगढ़, ललितपुर उत्तर प्रदेश


                                दशावतार मंदिर देवगढ़, ललितपुर उत्तर प्रदेश

               

       

        देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जनपद में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। यह ललितपुर मुख्यालय से 33 किमीग्वालियर से 235 किमीतथा झांसी से 125 किमीकी दूरी पर स्थित है। देवगढ़ से निकटतम रेलवे स्टेशन जाखलौन 12 किमी की दूरी पर हैं। देवगढ़ उत्तर भारत से दक्कन के मार्ग में एक प्रमुख व्यावसायिक केंद्र के रूप में स्थापित था। देवगढ़ प्राचीन सभ्यता के केंद्र मध्यप्रदेश के पवाया जो वर्तमान में ग्वालियर के पास स्थित है। मध्यप्रदेश के सागर जिले के पास स्थित एरणभिलसा वर्तमान में विदिशाउदयगिरीसांचीउज्जैन तथा उत्तर प्रदेश के वर्तमान राज्य प्रयागवाराणसी और पाटलिपुत्र प्राचीन मार्गों से जुड़ा हुआ था और सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र था। मूलरूप से मंदिर पर विष्णु के दशावतारों का अंकन थाइसलिए इसे दशावतार मंदिर कहा जाता है।

        दशावतार मंदिर गुप्तकालीन कला का पंचायत श्रेणी में निर्मित  मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह लाल बलुए पत्थर से एक चैकोर आकार की उंची जगती पर निर्मित है। इस तक पहुंचने के लिए चारों ओर सात सीढ़ियों से युक्त चार सोपान निर्मित हैं। मंदिर के तीनों दिशाओं की वाह्य दीवारों पर अद्भुत प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई है। वर्तमान में मंदिर का शिखर नष्ट हो गया हैं एवं वर्गाकार गर्भगृह में प्रमुख देवता की प्रतिमा भी नहीं हैपरंतु उपरोक्त मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित था। मंदिर के चारों कोनों में एक लघु मंदिर के अवशेष प्राप्त होते हैंजो वर्तमान में दृष्टव्य है। मंदिर में कृष्ण-जन्मनन्द-यशेदाबलदेवमिथुन-आकृतियांआदि के दृश्य उल्लेखनयी हैं।

                मंदिर के प्रवेश-द्वार की चैखट पर मिथुन प्रतिमाएंमकरकुम्भ एवं श्रीवृक्ष की मालाआदि अंकित हैंद्वार के नीचे के भाग में स्थानक (खड़ी अवस्थामें विष्णुद्वारपाल और यक्षी की मूर्तियां प्रदर्शित हैं जबकि उपर के भाग में मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना का अत्यंत सुदर अंकन किया गया है। दशावतार मंदिर गुप्तकाल में गर्भगृह के उपर शिखर निर्माण के प्रांरभ होने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

                                   


 

शेषशायी विष्णु-

 

        दशावतार मंदिर के दक्षिणी दिवाल में शेषशायी विष्णु कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा स्थित है। शेषशायी विष्णु शेषनाग के सहस्र फणों की छाया में लेटे हुए हैं। लक्ष्मी जी विष्णु जी का पैर दबा रही है। उपर ब्रह्या जी विकसित कमल पर विराजमान हैं। फलक में दाहिनी ओर इंद्रवरूण और कार्तिकेय दिखाई दे रहे है। अनन्तशायाी के नीचे की ओर छः मानव आकृतियां दिखाई दे रही हैंजिनमें पांच पुरूष औ एक महिला पंक्ति में खड़े है। जिनका अभिज्ञान विष्णु के आयुध-पुरूषों तथा मधु-कैटभ से किया गया है।

                                       

 

 

 गजेंद्र मोक्ष-

        शावतार मंदिर के उत्तरी दीवाल में प्रस्तर में गजेंद्र मोक्ष की कथा का सर्वश्रेष्ठ अंकन किया गया है। इस कथा में पानी पीने आया हाथी नाग द्वार पकड़ लिये जाने पर चीत्कार कर रहा है। अपने भक्त द्वारा इस तरह स्मरण करने पर उसे मुक्त कराने हतु गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णु जी पधारे। विष्णु जी इतने शीघ्रता से आये कि अपना मुकुट ले जाना भूल गए जिसे लेकर विद्याधर युगल उड़ते हुए आ रहे हैं। नाग राजा तथा रानी हाथ जोड़कर विष्णु से क्षमा याचना कर रहे हैं। 


















नर नारायण -

        दशावतार मंदिर की पूर्वी दीवला पर प्रस्तर में  नर-नारायण का अंकन किया गया है। दोनों बदरिकाश्रम में पृथक-पृथक शिलाखण्डों पर बैठे हुए हैं। दाई ओर स्थित नारायण अपने ज्ञान का प्रकाश नर रूपी अवतार को दे रहे  हैं। हिरन और शेर को एक साथ दिखलाकर तपोवन का आभास किया गया है।

 















               

       


 

 

 

 

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