बौद्ध उपुनिथ-महाविहार, अशोक का लधु शिलालेख श् स्तूप, शैलाश्रय और शैल चित्र (जिला सिहोर ग्राम पानगुरारिया मध्यप्रदेश) ईशा पूर्व दूसरी शताब्दी

म0प्र0 के सिहोर जिले के बुधनी तहसील में पानगुरारिया ग्राम में उपुनिथ महाविहार स्थित है, जहाॅं पहुॅंचने के लिए निकटतम रेल्वे स्टेशन सिहोर जिले में स्थित बुधनी रेल्वे स्टेशन है, और सड़क मार्ग से होशंगाबाद पहुॅंचने के लिए नर्मदा ब्रिज पार  सलकनपुर के प्राचीन देवी स्थल पर पहॅुंचने वाले सड़क मार्ग है पर स्थित है। हवाई यात्रा से पहुॅंचने के लिए निकटतम हवाई हड्डा भोपाल है। सन् 1976 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा खोज की गई थी यहाॅं पर सम्राट अशोक के दो लघु शिलालेख और शंुगकालीन एक यष्टि लेख और पुरा मानव निवास के उपयोग में आने वाले शैलाश्रय और शैलचित्र, गुफाएं मिलते है। 
1. अशोक कालीन लघु शिलालेख- अशोक कालीन लघु शिला में प्राकृत भाषा एवं ब्राम्ही लिपि में है, जो कि पत्थर से निर्मित गुफा मंे पत्थर पर उत्र्कीण किया गया है। उपरोक्त शिलालेख से यह ज्ञात होता है सम्राट अशोक द्वारा यात्रा के समय कुमार शव माणिम प्रदेश अर्थात् वर्तमान में मध्य देश का राजा था। और उपुनिथ विहार की व्यवस्था के बारे में सम्राट अशोक की ओर से विशेष व्यवस्था के सबंध में निर्देशों का उल्लेख है।

2. शंुगकालीन यष्टि लेख यष्टि लेख जो कि पाषाण (पत्थर) से निर्मित छाता के अनुरूप है जिसमें यष्टि (छाते की छड़) लेख के रूप में यह उल्लेख है कि इस छाते को कोरम्मक के भिक्षुणी विहार की प्र्रमुख भिक्षुणी संधमित्रा ने दान किया। दान करता भिक्षुणी संघमित्रा, सम्राट अशोक की पुत्री थी तथा कोरम्मक का भिक्षुणी विहार श्रीलंका में स्थित था। उपरोक्त छाते का व्यास लगभग 5 फुट है यह दो तरफ से खंडित है और उसके टूटे हुए भाग उपलब्ध नहीं है। छाते के भीतरी भाग में लंबी रेखायें छाते की कमानी को दर्शाते है। छाता जिस पत्थर की छड़ (यष्टि) पर मूलरूप में लगा हुआ था, 9 फुट लंबा षष्ठ कोण के आकार का है यष्टि लेख ईसा के द्वितीय शताब्दी पूर्व शुंगकालीन का है जो कि मुख्य महास्तूप पर लगा हुआ था परन्तु वर्तमान में महास्तूप पर यष्टि और स्तंभ उपलब्ध नहीं है।

3. महास्तूप एवं लघु स्तूप  स्तूप कई बड़े एवं छोटे आकार के स्तूपों को भग्नावशेष स्थित है स्तूप सादे पत्थर से बनाये गये है। जिन्हें वर्तमान में लगभग 12 स्तूपों को पुरातत्व विभाग द्वारा मूलरूप दिये जाने का प्रयास किया गया है और पत्थरों को व्यवस्थित रूप से गोलाई में जमाया गया है। इन स्तूपों में बौद्ध समुदाय के संतों के अस्थि अवशेष रखे गये थे। एक प्रमुख स्तूप जो कि प्रवेश द्वार के पास स्थित है लगभग 30 फुट गोलाई में है जिसके दो तरफ स्तूप पर पहुॅंचने के लिए पत्थर की सीढ़ी निर्मित है और स्तूप के चारों और प्रदक्षिणा पथ उसकी परिक्रमा लगाये जाने के लिए उपलब्ध है इसी मुख्य स्तूप में यष्टि लेख मूल रूप लगा हुआ था, जो कि वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। यष्टि लेख को मरम्मत के लिए विदिशा स्थित सांची में पुरातत्व विभाग द्वारा रखा गया है।

4. उपुनिथ-महाविहार और शैलचित्र- मुख्य स्तूप के पास स्थित शैलाश्रय में उपुनिथ महाविहार कीे स्थापना की गई थी छोटे बड़े शैलाश्रयो में बौद्ध भिक्षुओं के आवास और उनके साधना स्थल स्थित थे, एक मुख्य शैलाश्रय में सम्राट अशोक के दो लघु शिलालेख पाषाण (पत्थर) पर उत्कीर्ण किए गये थे। वर्तमान में शैलाश्रयो को सारू और मारू की गुफा के नाम से स्थानीय लोग जानते है। स्थानीय ग्रामीण लोगो की मान्यता के अनुसार इस स्थान को भूतप्रेतो का निवास है। उपुनिथ महाविहार सामने की ओर से पत्थरों की दीवाल लगाकर बंद किया गया है। शैलाश्रयांे में आखेट करते हुए तथा धार्मिक विषयों से संबंधित शैल चित्रो का अंकित किया गया है। उपलब्ध स्तूपों की संख्या और लघु शिलालेख तथा यष्टि लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपरोक्त स्थल अपने समय में बौद्ध अनुयाईयों का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा है इसमें बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी रहते थे। उपरोक्त स्तूप, शैलाश्रय एक उॅंची पहाड़ी श्रृंखला पर स्थित है और भारतीय सर्वेक्षण पुरातत्व विभाग द्वारा उपरोक्त स्थान का संरक्षण किया जा रहा है तथा अव्यवस्थित बौद्ध स्तूपों को उनके मूल रूप में स्थापित करने का प्रयास वर्तमान में किया जा रहा है। ;gka ls Lrwiksa ds lkFk ckS) fHk{kksa ds fy, izkd`frd xqQk,a gS ftuesa fHkRRkh; fp=ksa dk fuekZ.k fd;k x;k gSA eq[; xqQkvksa esa v'kksd ds nks f'kykys[k gS ,d f'kykys[k esa v'kksd ds iq= egsUnz dh ;k=k dk mYYks[k gS tks fd v'kksd dk iakpok f'kykys[k gS izeq[k nks LRkwi gS ftUgsa lk: vkSj ek: dgk tkrk gSA ;g nksuksa Lrwi Hkxoku cq) ds f'k"; lkjhiq= vkSj ekSnzY;k;ku ds vfLFk vo'ks"kksa ij fufeZr fd;s x;s gSA


उपुनिथ महाविहार प्राचीन व्यापार मार्ग जो कि ईसा पूर्व से विदिशा से दक्षिण की ओर जाने वाले व्यापार मार्ग के निकट स्थित था। उपरोक्त बौद्ध स्तूपों को वर्तमान में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित किया गया।














टिप्पणियाँ

  1. मध्यप्रदेश शासन पुरातत्व विभाग को उक्त स्थान को अपने संरक्षण में लेकर इसे पर्यटन स्थल घोषित करना चाहिए जिससे उक्त स्थान की सुरक्षा भी होगी।

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