नील कंठेश्वर शिव मंदिर उदयपुर तहसील गंजबासौदा जिला विदिशा मध्यप्रदेश 11 वीं शताब्दी

नील कंठेश्वर शिव मंदिर मध्यप्रदेश स्थित विदिशा जिले के गंजबासौदा तहसील के उदयपुर ग्राम में स्थित है जहाॅं पहुॅंचने के लिए निकटतम रेल्वे स्टेशन गंजबासौदा में और सड़क मार्ग से भोपाल -सागर मार्ग में भोपाल-विदिशा  ग्यारसपुर होते हुए उदयपुर और विदिशा से गंजबासौदा होते हुए उदयपुर पहॅंचा जा सकता है। निकटतम हवाई हड्डा भोपाल में स्थित है। जिला मुख्यालय विदिशा से मंदिर लगभग 54 किमी की दूरी पर स्थित है।
मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त द्वारा कराया गया था। मंदिर संवत् 1116 में प्रारंभ हुआ था और संवत् 1137 में निर्माण पूर्ण हुआ था और संवत 1137 में में शिखर पर ध्वजारोहण किया गया था, जिसका उल्लेख शिलालेख में है।
मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारांे ओर पत्थर की दीवाल बनाई गई है। मंदिर में प्रवेश के चार द्वार थे वर्तमान में केवल प्रवेश के लिये एक द्वारा उपलब्ध है। विशाल पत्थर से निर्मित जगती पर मंदिर का निर्माण किया गया है। मुख्य मंदिर व अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुये है और सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हुआ है। मुख्य मंदिर मध्य में स्थित है और उसके चारों प्रत्येक कोने पर छोटे मंदिर का निर्माण किया गया था, और छोटे मंदिरों के मध्य में भी यज्ञशाला जैसे धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया था। वर्तमान में सभी छोटे मंदिर मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं है केवल उनके भग्नावेश उपलब्ध है। मंदिर का निर्माण खुजराहों के मंदिरों के निर्माण से समरूप और पंचायत शैली के समरूप है। मंदिर के शिखर पर एक मानव मूर्ति निर्मित है। आर्य शैली के शिखर मंदिरों में उपरोक्त मंदिर महत्वपूर्ण है। मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग पर निर्मित छोटे मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। जो वर्तमान में मंदिर प्रांगण में उपलब्ध है।
हिजरी 737 और 739 के दो शिलालेखों में मुहम्मद तुगलक के काल में और हिजरी 856 में इस्लामशाह सूरी के शासनकाल में मसूखाॅ द्वारा और हिजरी 894 के शिलालेख में मांडू के मुहम्मद शाह खिलजी के समय में मस्जिद का निर्माण किये जाने का उल्लेख है। मुख्य नीलकंठेश्वर मंदिर की बाह्य दीवालों पर उत्र्कीण देवी देवताओं के वास्तुशिल्प मुस्लिम शासन के शासकों के समय के दौरान तोड़ा गया है जिसके अवशेष मंदिर प्रागंण वर्तमान में उपलब्ध है।
 मुख्य मंदिर मध्य मे निर्मित किया गया है और उसमें प्रवेश के तीन द्वार है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है जिसमें सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही उगते हुए सूरज की किरणें पड़ती है। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार लगभग 8 फुट का है जिस पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है जो कि केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है। वर्तमान में भगवान शिव की पूजा अर्चना मंदिर पर की जाती है। शिवलिंग का निर्माण भोपाल के पास स्थित भोजपुर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग के समरूप है।
मंदिर के बाह्य दीवाल पर विभिन्न देवी-देवताओं के मूर्तियाॅं पाषाण पर उत्कीर्ण की गई है, अधिकांश मूर्तियाॅं भगवान शिव के विभिन्न रूपों से सुसज्जित है महत्वपूर्ण मूर्ति शिल्प में स्त्रीगणेश, भगवान शिव की नृत्यरत् नटराज मूर्ति में महषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय, आदि की मूर्तियाॅं है और इसके अतिरिक्त स्त्री सांैदर्या को प्रदर्शित करती है स्त्री के विभिन्न रूपों का मूर्तिशिल्प मंदिर की बाहरी दीवारों पर, मंदिर के भीतरी दिवालों











टिप्पणियाँ

  1. मंदिर के बारे में एक दंत कथा प्रचलित है राजा उदयादित्य ने मन में विचार कर लिया था कि मेरे जैसा मंदिर संसार में दूसरा नहीं होना चाहिए राजा राजा ने विचार लिया था कि मंदिर निर्माण पूर्ण होने के पश्चात कारीगर को मृत्युदंड दे दिया जाए जिससे ना कारीगर जीवित रहेगा और ना ही दूसरा मंदिर बनेगा मंदिर निर्माण करने वाला कारीगर बी राजा के मनोभाव जान गया था इसके बाद भी बिना विचलित हुए मंदिर निर्माण में तल्लीनता पूर्वक लगा रहा उसने अपने घर के सदस्यों को पहले से सजाकर गुप्त संदेश से परिचित करा दिया था गुप्त संदेश था सूट का सूट इसका अर्थ का कारीगर की प्राण संकट में हैं मंदिर निर्माण कार्य अंतिम चरण में था तब राजा ने पूछा कि मंदिर निर्माण पूर्ण हो चुका कारीगर ने उत्तर दिया कि महाराज अंतिम कार्य अभी बाकी है राजा ने पूछा क्या काम से कारीगर ने कहा कि महाराज एक विशेष कार्य शेष है उसमें विशेश्वर की आवश्यकता है और उसका नाम है सूट का सूट लेने के लिए मेरे घर तक फिल्म राजकुमार को ही जाना पड़ेगा तब राजा ने कहा ठीक है राजकुमार को भेज देते हैं राजा ने राजकुमार को आज्ञा दी कि जाओ कार्य के घर से सूट का सूट ले आओ राजकुमार अपनों के साथ वृद्धि के लिए कारीगर राजकुमार पुत्र राजकुमार ने उनसे कहा कि आपका शुभ नाम आया है कारीगर का मकान राजा के किले से भी अधिक सुरक्षा दिवस से परिपूर्ण था उसमें साथ कमरे थे और सातों कमरों के दरवाजे की चाबी से सोचा कि यहां से कमरे में पूर्व दिशा की अलमारी में रखा है क्योंकि उसको नारी जाति हाथ नहीं लगा सकती राजकुमार शुक्ला ने कमरे में प्रवेश हुआ किधर पुत्रवती बंद कर दिए रह गया के नाम एक पत्र लिखा घर आवे कारीगर का काम यही है संदेश पत्र के अंग रक्षकों के हाथों राजा तक भिजवा दिया जाने संदेश पत्र पढ़कर अपने निश्चय पर विचार किया और अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा उसने कारीगर को अपने विचार से अवगत कराते हुएकराते हुए क्षमा याचना की उसने कारीगर से कहा कि मैंने तुमको मारने का निश्चय किया था भाई कैसे पूरा होगा तब कारीगर ने उनकी पाषाण मूर्ति बनाकर मंदिर के शिखर पर स्थापित कर दी जो आज भी स्थापित है राजा ने बहुत ही रे जवारा देकर कारीगर को सम्मानित करते हुए उसके घर पहुंचा दिया घर पहुंचकर कारीगर ने राजकुमार को आजाद कर दिया मंदिर में गर्भ गृह के नीचे एक ठिकाना बताया जाता है जिसका रास्ता किसी ब्लूटूथ का लाभ से होकर जाता है उसका एक आने में हीरा जड़े शिवलिंग स्थापित है शिवरात्रि पर राजा पूजा का भी संरक्षित बताया जाता है

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