विष्णु मंदिर Vishnu Mandi, Vinayka Disstrict Sagar, M.P.

मध्यप्रदेश राज्य के सागर जिले की बंडा तहसील में सागर मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर विनायका ग्राम में स्थित है । मंदिर तक सागर बंडा होते हुये विनायका सड़क मार्ग से राष्ट््रीय राजमार्ग क्रमांक   से पहुंचा जा सकता है । निकटतम रेलवे स्टेशन सागर है ।
संक्षिप्त इतिहास- विनायका के ज्ञात इतिहास में लगभग 15 वीं शताब्दी में विनायका गढा मंडला के गौड़ राजा का अधिकार था बाद में इसे ओरछा के राजा वीरसिंह देव ने ले लिया था और सन् 1730 तक छत्रसाल ने इसे मराठा पेशवा बाजीराव को दिया था मराठा शासक के राज्यपाल विनायकराव द्वारा यहां एक किले का निर्माण कराया गया था और विनायकराव के नाम पर ही ग्राम का नाम विनायका पड़ा था । बाद में 1842 में नरहट और चंद्रपुर के बुंदेला ठाकुरों द्वारा इसे लूटा गया था । 1857 में शाहगढ़ के राजा द्वारा इस पर कब्जा किया गया था 1857 की क्रांति के समय सागर से जाकर अंग्रेज मेजर लीगार्ड द्वारा विनायका पर हमला किया गया था परंतु उनकी हार हुई थी । सन् 1861 तक विनायका पाटन परगना का मुख्यालय था उसके बाद मुख्यालय बंडा में स्थानांतरित किया गया था ।
मंदिर-गर्भगृह- मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और गर्भगृह में एकमात्र बड़ी सी जलहरी पर शिवलिंग रखा हुआ है गर्भगृह के फर्श की फर्शिंयां और लगे हुये पत्थर उखडे हुये हैं जो कि हाल ही के वर्षों में छिपे हुये धन की खोज में अज्ञात लोगों द्वारा उखाडे जाने का प्रयास किया गया है । गर्भगृह में शिवलिंग के अलावा अन्य कोई मूर्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है ।
मंदिर का द्वार- मंदिर का द्वार खंडित अवस्था में है द्वार निर्माण में उपयोग लाये गये पत्थर के खम्भे मंदिर के सम्मुख ही उखडे और खंडित अवस्था में पडे हुये हैं । द्वार के खम्भों पर उत्कृष्ट अलंकरण कर पृष्ठ भाग पर कीर्तिमुख,किन्नर,मिथुन,गज,कमल के फूल,सादूल आदि की मूर्तियां निर्मित की गई हैं । मंदिर के सामने वाले भाग पर विभिन्न प्रकार के अलंकरणों से संज्जित प्रस्तर के खंभे आदि पडे हुये हैं जो कि मंदिर के भग्नावेश हैं ।
मंदिर निर्माण कार्य- मंदिर एक से डेढ फुट मीटर उंचाई के एक आयताकार चबूतरे पर स्थित है जो कि पूर्वमुखी है और निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है मंदिर का एकमात्र गर्भगृह ही सुरक्षित है शेष भाग नष्ट हो गया है । मंदिर के शेष भाग के नष्ट हुये पत्थर के टुकडे स्तम्भ शीर्ष आदि मंदिर स्थल पर पडे हुये हैं । मंदिर की उत्तरी पश्चिम और दक्षिणी बाहर की दीवालों पर उत्कृष्ट अलंकरण कर विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं कुछ मूर्तियां ही खंडित होने से शेष रह गई हैं । मंदिर की दीवालों में शिव पार्वती की चैसर खेलती हुई प्रतिमा,कैदी के खींचे जाने के दृश्य,दिकपाल, अग्नि, वायु, अप्सरा, शीतला देवी,गजासुर वध,शिव त्रिविक्रम,विष्णु आदि की प्रतिमा निर्मित की गई हैं ।
गरूड़ स्तंभ- मंदिर के सामने पूर्व दिशा में लगभग 80 से 100 फुट की दूरी पर बीस से तीस फुट के मध्य उंचाई का प्रस्तर ( पत्थर ) से निर्मित गोलाकर स्तम्भ विद्यमान है स्तम्भ के शीर्ष भाग पर चैकोर आकार का निर्माण है जिस पर पूर्व में किसी सिंह,वृष या गरूड़ की मूर्ति विद्यमान रही होगी जो कि वर्तमान में उपलब्ध नहीं है स्तंभ की गोलाई अधिक होने से दोनों हाथ से स्तम्भ पकडने से दोनों हाथ आपस में छुआ जाना संभव नहीं है । स्तंभ के चारों ओर मंदिर उपयोग में आये पत्थर के टुकडे अस्थायी रूप से जमा कर रखे गये हैं। स्थानीय लोग स्तंभ को भीमलाट भी कहते हैं ।
मंदिर का शीर्ष- मंदिर के पास ही दक्षिण दिशा की ओर एक तरफ से खुला हुआ तीन शिलापट वाला अलंकृत खंडहर रखा हुआ है जो देखने पर मंदिर का शीर्ष प्रतीत होता है लेकिन इसे स्थानीय लोग तीन दीवालों की झोपडी भी कहते हैं । मंदिर के सामने वाले भाग पर एक खंडित प्रतिमा जमीन में गडी हुई अवस्था में स्थित है जो द्विमुखी है परंतु किस देव की है यह पहचान स्पष्ट नहीं है ।
मंदिर पुरातत्विक महत्व का है इसलिये मध्यप्रदेश शासन द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है । पुरातत्व वेत्ता जी के चंद्रोल के अनुसार मंदिर 9 वीं शताब्दी का है और मंदिर निर्माण तथा मूर्तिशिल्प निर्माण की दृष्टि से मंदिर प्रतिहार कालीन है और विष्णु मंदिर है । मंदिर निर्माण शैली और उपलब्ध मूर्तिशिल्प से मध्य गुप्तकालीन विष्णु मंदिर होना प्रतीत होता है ।मंदिर गांव के बाहर स्थित है और उसमें वर्तमान में पूजा होने का कोई चिन्ह नहीं पाया जाता ।
मंदिर से करीब 1000 मीटर दूरी पर एक छोटी से गढ़ी स्थित है स्थानीय लोगों के अनुसार उक्त गढी में से मंदिर तक जाने के लिये भूमिगत रास्ता था जो कि अब बंद कर दिया गया है वर्तमान में उक्त गढी में दुर्गा मां का मंदिर बनाया गया है । स्थानीय लोगों के अनुसार इस गढी के पास फांसी घर भी था जिसके अवशेष नष्ट हो गये हैं ।
मंदिर तथा विष्णु गरूण स्तम्भ का संरक्षण किया जाना आवश्यक है। मंदिर परिसर को पत्थर की दीवाल बनाकर घेर कर रखा जाकर संरक्षित किया जा सकता है। मध्यप्रदेश शासन द्वारा पुरातत्व महत्व को घोषित किया गया है परन्तु संरक्षण के लिये कोई उपाय नहीं किया गया है यहां तक कि मंदिर परिसर में मंदिर को संरक्षित किये जाने के संबंध में पुरातत्व विभाग का कोई बोर्ड तक नहीं लगा हुआ है।

मूर्तिशिल्प
1. उमामहेश्वर प्रतिमा चैसर खेलते हुये
  मंदिर की दक्षिणी दीवाल पर चैसर खेलते हुये उमा मेहेश्वर की मूर्तिशिल्प स्थित है मध्य में चैसर रखा हुआ है दोनों ओर शिव के समीप वीरभद्र तथा गणेश हैं पार्वती के समीप बांयी ओर कार्तिकेय,नंदी के गजे में रस्सा बंधा हुआ है पार्वती जी के सखियों के हाथ में रस्सी का छोर है और अन्य शिव गण दर्शाये गये हैं मूर्ति खंडित होने के कारण पूर्ण स्पष्ट नहीं है।
2. दिकपाल अग्नि की प्रतिमा खडे रूप में है उनका वाहन मेष भी दिखाई दे रहा है ।

शीतलामाता की मूर्ति वास्तु अलंकरण की दृष्टि से विशिष्ट प्रकार की है इस प्रकार की मूर्ति मडखेरा के सूर्यमंदिर में प्राप्त हुई है । देवी गर्दभ पर आरूढ है दांये हाथ में ध्वजदंड है नीचे अस्पष्ट पशु आकृति का अंकन है ।
गजासुर संहारक शिव की प्रतिमा मंदिर की दक्षिणी दीवाल पर स्पष्ट है जो कि खंडित अवस्था में नहीं है शिव गजासुर को त्रिशूल में उठाये हुये हैं उनके पैरों के नीचे एक असुर दबा हुआ है उपरोक्त प्रतिमा सबसे उत्कृष्ट प्रतिमा है ।
शिव त्रिविक्रम मंदिर के दक्षिणी दीवाल पर उपरोक्त प्रतिमा स्थित है जो कि खंडित अवस्था में नहीं है । नाचते हुये भगवान शिव का एक पैर आकाश की ओर उठा हुआ है तथा आकाश स्थित विस्फारित नेत्र वाले मुख को स्पर्श कर रहा है । नीचे तीन मानवाकृतियां हैं जिनमें एक बली दूसरा सेवक तथा तीसरा शुक्राचार्य ज्ञात होता है ।

























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