विदेश में गणेश पूजा एवं गणेश प्रतिमाएं
विदेश में गणेश पूजा एवं गणेश प्रतिमाएं
ब्रिटिश म्यूजियम लंदन और अमेरिका,फ्रांस के प्रमुख म्यूजियम और यूरोप स्थित म्यूजियमों में विभिन्न आकार एवं स्वरूप की गणेश प्रतिमा प्रदर्षन के लिए उपलब्ध है। जो कि भारत, अंकोर वाट, नेपाल, बांगलादेश आदि स्थानों से प्राप्त की गई है। विदेश में निम्नलिखित देषों में गणेश पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से है और विभिन्न देषों में गणेश जी को भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है।
1. चीन- चीन के प्राचीन हिन्दू मंदिरों में चारों दिशाओं के द्वार पर गणपति के दर्शन होते हैं, पश्चिम के गणपति को ’’वजूवासी’’ कहते हैं । उनके हाथ में धनुष-बाण हैं । पूर्व के गणपति को ’’वजू’’ कहते हैं । उनके हाथ में छोटा छत्र होता है । दक्षिण के गणपति को ’’वजू भक्षक’’ कहते हैं और उनके हाथ में पुष्पमाला है । उत्तर के गणेशजी का नाम ’’वजमुख विनायक’’ है, उनके हाथ में तलवार है । चीन में गणेश जी का प्रवेश ’’विनायक’’रूप में ही हुआ होगा । उनकी मूर्तियां चीनी यात्री अपने हाथ ले गए होंगे वहां जाकर उनकी प्रतिष्ठा बढ़ गई । कारण स्पष्ट है कि ’’जातक’’ के कथानुार ’’बुद्धदेव’’ की माता को स्वप्न हुआ कि एक हाथी उनके कोख में प्रवेश कर रहा है । उसी गर्भ से तथागत बुद्ध जन्मे थे । इसलिए चीन में हाथी बुद्ध का प्रतीक मानकर पूजा जाता है । संभवतः इसी कारण हस्तिमुख गणेश जी उनके आराध्य गणेश हो गए हों ।चीन के तुनहु-आंग में एक गुफा की दीवार पर मूर्तियां बनी हैं। ये मूर्तियां उसी ढंग की हैं, जैसी कि अजंता की हैं। इनमें बुद्ध मूर्तियों के अतिरिक्त सूर्य, चंद्र, कामदेव आदि के साथ-साथ गणेश जी की भी मूर्ति है । उन्होंने सिर पर पगड़ी और पांव में सलवार पहन रखा है । चीन में कुंग-हिसएन के गुफा मंदिर में जो मूर्ति है, उसके साथ इसका निर्माण की तिथि (सं. 588) अंकित है । इतनी प्राचीन मूर्ति कदाचित् भारत में भी उपलब्ध नहीं है । यह विनायक की मूर्ति है । इस पर चीनी भाषा में लिखा है कि ’’यह हाथियों के अमानुष राजा की मूर्ति है । चीन में गणेश जी दो नामों से प्रख्यात हैं- ’’विनायक’’ और कांगितेन’’। यहां अन्य देवताओं की अपेक्षा विनायक-पूजन का विशेष महत्व है । नृत्यगणपति की पूजा यहां विशेष रूप में होती है ।
2. जापान- जापान में गणपति की चार भुजायें है और वह गहरो पीले रंग के पाजमे के उपर बाध चर्म लपेट कर पालथी मार कर बैठते है। जापान में उनके नाम हैं - विनायक, शोदेन और कांगितेन। जापान के एक हिन्दू मंदिर
में तो गणेश की हाथी पर सवार एक दुर्लभ प्रतिमाह के दर्शन होते हैं, यहां बसे हिन्दू के अलावा चीनी लोग भी इस देवता के प्रति श्रद्धा रखते हैं । यहां के भक्तगण अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए यहां आकर अपने सिर के बाल कटवाते हैं, मनौती पूर्ण होने पर गरीबों को सोने-चांदी के गहनों का दान देते हैं तथा हाथी को मोटी-मोटी गेहूँ के आटे की बनी रोटी और गन्ने खिलाते हैं, ताकि गणपति बाबा की सभी पर असीम कृपा सदा बनी रहे ।
3. इंडोनेशिया- इंडोनेशिया एक मुस्लिम देष है पंरतु इंडोनेषिया सरकार द्वारा सरकार नोटों पर मंगलमूर्ति ’’गणेश’’ का चित्र छपा है,, परंतु हिन्दू रीति-रिवाज यहां आज भी लोकप्रिय है, इंडोनेषिया के द्वीप बाली में बहुताया से गणेष मंदिर उपलब्ध है और गणेष पूजा का विषेष महत्व है। बाली में विषेषकर लकड़ी के बनाये हुये गणपति के हस्तषिल्प विष्व प्रसिद्ध है। ’’बाली’’ के जमबरन स्थान की गणेष मूर्ति के सिंहासन के चारों ओर अग्निशिखाएं बनी हुई हैं और उनके दाहिने हाथ में मशाल हैं । जावा स्थित ’’चण्डी-बनोन’’ नाम शिवमंदिर में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के साथ गणेश्ेा की मूर्ति भी अंकित हैं ।
4. मलय देश- मलय देश में ’’गणपति’’ को ’’गज्जू’’ नाम से जाना है । गणेश चतुर्थी के दिन यहां के खंडहर हिन्दू मंदिरों में ’’गणपति’’ मंत्र जपा जाता है, फिर गणेश जी की सवारी निकाली जाती है। मलेषिया में भी प्राचीन गणेष मंदिर प्राप्त हुये है और गणेष पूजा आज भी प्रचलित है। मलय द्वीपपुंज में जो गणेश की प्रस्तर निर्मित या धातुनिर्मित प्रतिमाएं मिलती हैं, वे सामान्यतः भारतीय प्रतिमाओं के सदृश तो हैं ही किंतु उनमें अन्य अनेक विशेषताएं भी हैं । भारतीय गणेश प्रतिमाएं प्रायः पद्मासन, स्वस्तिकासन या अद्र्धासन से बैठी मिलती हैं । किंतु जावा आदि की मूर्तियों में गणेश इस प्रकार पालथी मारकर बैठे हैं कि दोनों पांव भूमि पर समरूप में पड़े हैं एवं उनके तलवे मिले हुए हैं । भारत में सूंड़ प्रायः बीच में ही दाहिनी या बांयी ओर मुड़ी होती हैं किंतु वहां बिल्कुल सीधी जाकर सिर पर मुड़ती हैं । कतिपय प्रतिमाओं के गले में मुण्डमाल हैं और उनके सिंहासन में भी मुण्ड खुदे हैं ।
5. अमेरिका- सन् 1968 में अमेरिका के डाक विभाग ने दो डाॅलर का जो डाक टिकट जारी किया था, उसमें चूहे पर गणपति विराजमान थे । वर्तमान में यह डाक टिकट दुर्लभ है तथा दो डाॅलर के इस टिकट की कीमत सात हजार डाॅलर है । अमेरिका में लंबोदर गणेश की मूर्ति मिलती है। दीवान श्री चमनलाल ने अपनी रचना ’’हिंदू अमेरिका’’ में विस्तृत रूप से गणेश पूजा पर प्रकाश डाला है। कोलंबस द्वारा अमेरिका का आविष्कार होने क पूर्व ही वहां गणेश, सूर्य आदि भारतीय देवताओं की मूर्तियां उपलब्ध हो चुकी थीं । अमेरिका के प्रसिद्ध संग्रहालयों में गणेष प्रतिमाएं प्रदर्षन के लिए रखी गई है और प्राइवेट संग्रहालयों में भी गणेष प्रतिमाओं को स्थान दिया गया है।
6. अफ्रीका- अफ्रीका में गजानंद की महिमा से प्रकृति इतनी प्रभावित हुई कि एक विशाल वृक्ष की शाख पर उसने गणपति की आकृति की रचना कर दी । प्रकृति की इस दुर्लभ आकृति का यहां के आदवासी अपना लोक देवता मानते हैं । दक्षिण अफीक्रा के ब्राजील में खुदाई के दौरान गणेश की प्राप्त मूर्तियों को 5 हजार वर्ष पुरानी मानी गया है
7. श्रीलंका- श्री लंका के हिन्दू देवालयों में गणेश चतुर्थी के दिन गणपति का नया चोला बदला जाता है तथा पुराने चोलों को पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है । इस दिन लोगों द्वारा गणपति की पूजा जंगली फलों-फूलों से की जाती है। श्रीलंका में बहुताया से प्राचीन गणेष प्रतिमाएं प्राप्त होती है, और गणेष मंदिर भी स्थापित है।
8. सुमात्रा- सुमात्रा दीप में गणेश चतुर्थी पर घर-आंगन को लीप-पोत कर साफ-सुथरा बनाया जाता है । फिर पेड़ों के पत्तों और फूलों से एक शानदार मंडप बनाया जाता है। इसमें माटी से निर्मित ’’गणपति’’ की स्थापना शुभ-समय में की जाती है । दीप और सुगंधित बत्तियां जलाकर गणपति को प्रसन्न किया जाता है। 24 घंटे उपरांत उनकी प्रतिमा किसी जलाशय में विसर्जित कर दी जाती है।
9. वोर्निया- वोर्निया में गणपति की चार भुजाएं हैं और यह गहरे पीले रंग के आसन पर बाघ चर्म लपेटकर पालथी मारकर विराजमान है । यहां गणेश चतुर्थी पर ’गणेश जी’’ की सुंदर झांकी बनती है। लोग खूब ढोल और बांसुरी बजाते हैं, बच्चे जमकर आतिशबाजी करते हैं ।
10. तिब्बत- तिब्बत के सैकड़ों हिन्दू मंदिरों और बौद्ध बिहारों के प्रवेश द्वार पर गणेश की मूर्ति विराजमान है । कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से ’’गणपति हृदय’’ नाम मंत्र जपवाया था। इसके सिवाय बुद्ध का ही एक चिह्न हाथी है और गणपति का मस्तक भी हाथी का है । इससे बौद्धों के देवता के रूप में गणेश प्रिय रहे होंगे, वैसे यहां हिंदुओं के गणेश और बौद्धों के गजबुद्ध को एक-दूसरे के साथ प्रेम से मिलते हुए दिखाने वाले चित्र और मूर्तियों हिन्दुओं के गणेश और बौद्धों के गजबुद्ध को एक-दूसरे के साथ प्रेम से मिलते हुये दिखाने वाले चित्र और मूर्तियां चीन, जावा, बोर्नियों तथा जापान में अनेक स्थान पर मिलती है। तिब्बत में थुंगा चित्रकला शैली में गणेष जी की पेंटिंग तैयार की जाती है। तिब्बत में शैव एवं बौद्ध दोनों ही प्रकार के मंदिरों में गणेश जी की मूर्तियां पाई गई हैं ।
11.बर्मा- बर्मा में श्री गणेश जी की अधिक मूर्तियां हैं। यहां इन्हें ’’महापिएन’’ कहा जाता है । ’’पिएन’’ विनायक का ही विकृत रूप हो सकता है या विध्न (जिससे गणेश जी ’’विघ्नेश्वर’’ कहलाए) शब्द का रूपांतर ’’पिएन’’ हो सकता है । बर्मा में गणेश चतुर्थी के दिन विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । स्याम देश में गणेश जी की अनेक मूर्तियां हैं । इनमें अनेक कलात्मक और सुंदर हैं । मूर्ति-कला की जिस शैली के अनुसार से निर्मित हुई हैं, उसका ’’अयूथियन’’ कहते हैं; क्योंकि उन दिनों स्यामदेश की राजधानी का नाम भी अयूथिया ’’अयोध्या’’ था ।
12. तुर्कीस्तान- तुर्कीस्तान में एक समय गणपति समुदाय ही अपने वैभव के शिखर पर था, वहां बाझालिक की गुफा के मंदिर की दीवारों पर पालर्थी मारकर बैठे गणपति का एक दुर्लभ चित्र मिला है । इस गणपति की सूंड के स्थान पर लंबी नाक है । इस चित्र के आसपास शंकर-पार्वती आदि के चित्र भी हैं ।
13. यूनान- यूनान निवासी गणेश का पूजन ’’ओरेनस’’ के नाम से करते हैं उनके धार्मिक-ग्रंथों में ओरेनस की अत्यधिक महत्ता का वर्णन उपलब्ध है । हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गणेश भगवान ’’लक्षसिंदूरवदन’’ भी कहलाते हैं । यूनानियों के ’’ओरेनस’’ और भारतीयों के ’’अरूणास्य’’ संबोधित एक से प्रतीत होते हैं । ’’अरूणास्य’’ का अपभं्रशरूप ’’ओरेनस’’ प्रतीत होता है ।
14. ईरान- ईरान के पारसियों में ’’अहुरमज्दा’’ नाम से गणेश की उपासना की जाती है। ’’जेन्दवस्ता’’ की पचासों आयतें ’’अहुरमज्दा’’ की लोकोत्तर शक्तियों का वर्णन करती हैं । फारसी भाषा में ’’स’’ प्रायः ’’ह’’ कार में परिवर्तित हो उच्चरित होता है। ’’सप्त’’ को ’’हप्त’’ ’’मास’’ को ’’माह’’ आदि बोलते हैं । इसी प्रकार ’’अहुरमज्दा’’ भी ’’असुरमदहा’’ का ही अपभं्रंश होना चाहिए। हिन्दू पुराणों में ’’गणेश’’ द्वारा असुरों के पराजित होने की अनेक गांथाएं हैं। इसीलिए
गणेश ’’असुरमदहा’’ (असुरों का मद हरने वाला) नाम से विख्यात हैं और यह नाम अन्वर्थक भी है।
15. मिश्र- मिश्र देश के इतिहासज्ञ हर्मिज ने लिखा है कि ’’सब देवों का वह अग्रिम है, जो बुद्धि का अधिष्ठाता है, उसका नाम ’’एकटोन’’ है । संभवतः वे देव ’’गणेश’’ ही हैं क्योंकि ये ही अग्रपूजनीय हैं और ’’एकटोन’’ शब्द ’’एकदन्त’’ का ही पर्यायवाची है ।
16. नेपाल- नेपाल में गणेशपूजा के संबंध में प्रमाण मिले हैं । नेपाल की राजधनी काठमाण्डु में गणेश की प्रतिमाएं पाई गई हैं। नेपाल में ’’सूर्यविनायक’’ के रूप में भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। नेपाल में तांत्रिक पुजा में उपयोग होने वाली गणेष प्रतिमाएं भी है।
17. कंबोडिया- कंबोडिया में ’’गणेश जी’’ को ’’केनेस’’ कहते हैं । इसका प्राचीन नाम ’’कम्बुज’’ था। यहां की श्री गणेश की आसन कांस्य-मूर्ति विशेष विख्यात है। कंबोडिया की पुरानी राजधानी ’’अंकुरवट’’ जहां हिन्दू मंदिर स्थित है उन मंदिरों में गणेश-मूर्तियां विभिन्न रूपों एवं कला में उपलब्ध हैं ।
18. माया सभ्यता- गणेश जी हमारे यहां रिद्धि सिद्धि और समृद्धि के देवता है, उन्हीं के समान माया सभ्यता में देवता है जिन्हें चाक नाम से जाना जाता है उन्हें इन्द्र की तरह वर्षा के देवता भी कहा जाता है।
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