देउर कोठार(बौद्ध धर्म से संबंधित पुरातत्व स्थल)

रीवा इलाहबाद राजमार्ग में मध्यप्रदेश की सीमा के अंदर रीवा से 70 कि.मी. दूर देउर ग्राम के क्षेत्र में बौद्ध धर्म से संबंधित पुरातत्व महत्व का स्थल स्थित है जिसमें मौर्य और शुंग कालीन ईसा पूर्व पहली से तीसरी शताब्दी तक के बौद्ध स्तूप आदिमानव द्वारा रहवास में उपयोग लाये गये शैलाशय स्थित है। इन शैलाशयों में मानव निर्मित लाल एवं सफेद रंग के चित्र भी पाये गये है। स्थल में लाल ईंटों से मौर्यकालीन सबसे प्राचीन स्तूप स्थित है जिसका निर्माण चैकोर चबुतरे में किया गया है शंुगकाल के स्तुपों में हार्मिका तथा पदक्षिणा का निर्माण किया गया है। भगवान बुद्ध से संबंधित शिलालेख भी पाया गया है जो कि ब्रहम्मि भाषा में है स्थल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है। स्थल की खोज डाॅ फााणिकांत मिश्रा और श्री अजीत सिंह द्वारा की गई थी भूमिगत नालियों के अवशेष भी मिले है सतना जिले में स्थित भरहूत और इलाहबाद स्थित कोशाम्बी के मध्य देउर कोठार के स्तूप स्थित है। तीनों स्तूपों में बौद्ध अनुयायियों के आपस में आवागमन की संभावना है क्योंकि तीनों प्राचीन दक्षिणापथ कोशाम्बी से उज्जैनी अवन्ति पथ पर स्थित है। दक्षिणापथ प्रसिद्ध प्राचीन व्यापारिक मार्ग रहा है। मार्यकालीन मिट्टी ईंट से बने तीन बड़े स्तूप और 46 पत्थरों के बने छोटे स्तूप स्थित है ऐसी संभावना है कि बौद्ध भिक्षू शिक्षा दीक्षा और साधना करते थे। खुदाई के दौरान त्वरण द्वारा मौर्यकालीन ब्रहम्मी लेख का उल्लेख शिलापट्ट स्तंभ और बर्तनों के टुटे हुए हिस्से बड़ी संख्या में प्राप्त हुए है। पत्थरों से निर्मित प्राचीन सड़क मार्ग जैसा कि रोमन सभ्यता में निर्माण हुए है के अवशेष भी मिलते है। शैलाशयों में शैल चित्रों से यह प्रमाणित होता है कि शैलाशयों में आदिमानव द्वारा निवास किया गया था।  























 

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