संदेश

जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

:ःः तिगवां (पूर्व गुप्तकालीन विष्णु मंदिर)ःःःVISHNU MANDIR कटनी पूर्व जिला जबलपुर (म0प्र0)

चित्र
ग्राम तिगवां में गुप्तकाल के पूर्व का विष्णु मंदिर स्थित है तिगंवा ग्राम  तहसील बहोरीबंद नया जिला कटनी पुराना जिला जबलपुर में स्थित है जो कि जबलपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। ग्राम में सड़क मार्ग से जबलपुर मिर्जापुर राजमार्ग स्थित सीहोरा से तथा सागर जबलपुर मार्ग से कटंगी होकर परिवहन की सुविधा उपलब्ध है। मंदिर मूलतः पत्थरों से बना 12 फुट 9 इंच का वर्गाकार छोटा मंदिर था, जो करीब डेढ हजार वर्ष पूर्व का है। जिसकी छत गुप्त शैली के अनुसार सपाट थी। गंगा और यमुना की प्रतिमायें मुख्य मंदिर के द्वार के दोनों ओर पाश्वों मंे है जो कि गुप्त शैली निर्माण के विशेषता है। मंदिर पांचवी शताब्दी या उसके पूर्व का है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, जो कि 8 फुट ग साढ़े सात फुट का है। विष्णु मंदिर जो वर्तमान में कंकाली देवी का मंदिर कहा जाता है क्योंकि मंदिर के मुख्य द्वार पर बाई ओर एक शिलापट के उपरी भाग पर कंकाली देवी की मूर्ति है। दाहिने शिला पट पर एक काली की मूर्ति है, कंकाली देवी के नीचे अनन्त नामक सर्प पर लेटे हुये विष्णु की प्रतिमा है जिनकी नाभि से निकले हुये कमल पर ब्रम्हा जी विराजते है। मंदिर मूलस्

विष्णु मंदिर Vishnu Mandi, Vinayka Disstrict Sagar, M.P.

चित्र
मध्यप्रदेश राज्य के सागर जिले की बंडा तहसील में सागर मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर विनायका ग्राम में स्थित है । मंदिर तक सागर बंडा होते हुये विनायका सड़क मार्ग से राष्ट््रीय राजमार्ग क्रमांक   से पहुंचा जा सकता है । निकटतम रेलवे स्टेशन सागर है । संक्षिप्त इतिहास- विनायका के ज्ञात इतिहास में लगभग 15 वीं शताब्दी में विनायका गढा मंडला के गौड़ राजा का अधिकार था बाद में इसे ओरछा के राजा वीरसिंह देव ने ले लिया था और सन् 1730 तक छत्रसाल ने इसे मराठा पेशवा बाजीराव को दिया था मराठा शासक के राज्यपाल विनायकराव द्वारा यहां एक किले का निर्माण कराया गया था और विनायकराव के नाम पर ही ग्राम का नाम विनायका पड़ा था । बाद में 1842 में नरहट और चंद्रपुर के बुंदेला ठाकुरों द्वारा इसे लूटा गया था । 1857 में शाहगढ़ के राजा द्वारा इस पर कब्जा किया गया था 1857 की क्रांति के समय सागर से जाकर अंग्रेज मेजर लीगार्ड द्वारा विनायका पर हमला किया गया था परंतु उनकी हार हुई थी । सन् 1861 तक विनायका पाटन परगना का मुख्यालय था उसके बाद मुख्यालय बंडा में स्थानांतरित किया गया था । मंदिर-गर्भगृह- मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार ह

वेैश्य टेकरी (बौद्ध स्तूप) उज्जैन मध्यप्रदेश

चित्र
उज्जैेन शहर से लगभग 5-6 किलो मीटर दूरी पर उज्जैन से मक्सी रोड पर ग्राम कानीपुरा के पास स्थित पीलिया खाल नाले  पर दो बौद्ध स्तूप स्थित हैं। जिनकी ऊचाई 100 और ब्यास लगभग 350 फीट है। बौद्ध स्तूप मौर्यकाल के पूर्व के हैं उपरोक्त बौद्ध स्तूपों के समूह को वर्तमान में वेश्या टेकरी के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक की पत्नि वैश्य पुत्री देवी ने उज्जैन में उक्त बौद्ध स्तूपों को बनवाया था। इसलिए वर्तमान में स्तूप समूह को वेश्या टेकरी के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक के समय इन्हीं स्तूपों को जीर्णोधार हुआ था क्योंकि यहां से प्राग मौर्य एवं मौर्यकालीन दोनेां प्रकार की ईटें मिलती हैं। उत्खनन के दौरान इन स्तूपों में बौद्ध भिक्षुओं के शरीर के अवशेष प्राप्त हुये हैं। बौद्ध स्तूपों का निर्माण मिट्टी से बनाई गई ईटों से किया गया है वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा वेश्या टेकरी स्तूपों को संरक्षित घोषित किया गया है। परन्तु स्तूपों से लगी जमीन में संबंधित किसानों द्वारा खेती की जाती है और संबंधित स्तूपों से लगी जमीन से किसानों द्वारा स्तूपों को क्षतिग्रस्त किया जाकर और उनकी मिट्टी तथा ईट को न

Statue cenotaph of Tatya Tope, Shivpuri

चित्र
A statue of freedom fighter of 1857 Tatya Tope has been installed at the place where he was hanged on April 17, 1859 at Shivpuri. Tatya Tope was the commandeer-in-chief of Maharani Laxamibai. He was matchless in Guerilla warfare. He was arrested by the British treacherously. The Kachhwaha ruler of Narwar Manu Singh was his friend. He called Tatya Tope on some pretext and informed the British of his presence. Tatya Tope was arrested on April 7, 1859 and was fried at Shivpuri. Before being hanged to death Tatya Tope said in the court “ I am not a slave to the British. I am a servant of Peshwa. Your accusations do not prove me guilty of any crime. I waged a war against you, so I am ready for death”.

नील कंठेश्वर शिव मंदिर उदयपुर तहसील गंजबासौदा जिला विदिशा मध्यप्रदेश 11 वीं शताब्दी

चित्र
नील कंठेश्वर शिव मंदिर मध्यप्रदेश स्थित विदिशा जिले के गंजबासौदा तहसील के उदयपुर ग्राम में स्थित है जहाॅं पहुॅंचने के लिए निकटतम रेल्वे स्टेशन गंजबासौदा में और सड़क मार्ग से भोपाल -सागर मार्ग में भोपाल-विदिशा  ग्यारसपुर होते हुए उदयपुर और विदिशा से गंजबासौदा होते हुए उदयपुर पहॅंचा जा सकता है। निकटतम हवाई हड्डा भोपाल में स्थित है। जिला मुख्यालय विदिशा से मंदिर लगभग 54 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त द्वारा कराया गया था। मंदिर संवत् 1116 में प्रारंभ हुआ था और संवत् 1137 में निर्माण पूर्ण हुआ था और संवत 1137 में में शिखर पर ध्वजारोहण किया गया था, जिसका उल्लेख शिलालेख में है। मंदिर लाल बलुआ पत्थर से भूमिज शैली में निर्मित है और मंदिर के चारांे ओर पत्थर की दीवाल बनाई गई है। मंदिर में प्रवेश के चार द्वार थे वर्तमान में केवल प्रवेश के लिये एक द्वारा उपलब्ध है। विशाल पत्थर से निर्मित जगती पर मंदिर का निर्माण किया गया है। मुख्य मंदिर व अन्य मंदिर जगती (पत्थर निर्मित चबूतरा) पर बने हुये है और सम्पूर्ण मंदिर निर्माण स्थल पत्थर की दीवाल से चारों ओर से घिरा हु