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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मंदसौर में रावण की पूजा

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                                                                        मंदसौर में रावण की पूजा         मंदसौर भारत के मध्यप्रदेश प्रान्त में उत्तर - पश्चिम में स्थित एक प्रमुख शहर है। मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर था , यह क्षेत्र दशपुर जनपद के रूप में जाना जाता था ,       मंदसौर स्थित खानपुरा क्षेत्र रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था। और नामदेव वैष्णव समाज के लोग मंदोदरी के वंशज होने के कारण रावण को अपना दामाद मानते हैंे और नामदेव समाज की महिलाएं रावण से घंूघट करती है।         खानपुरा क्षेत्र में ही लगभग 40 फीट उंची 10 सिर वाली आसन ( बैठी हुई अवस्था ) में रावण की विशाल प्रतिमा स्थापित है। दशहरे के दिन लोग ढोल - ढमाके के साथ रावण की पूजा करते हैं । रावण का दहन नहीं किया जाता है बल्कि प्रतिकात्मक रूप से रावण की प्रतिमा के गले में फटाकेे की लड़ लगाकर प्रतिकात्मक वध किया जाता है।         वर्षभर महिलाएं रावण के पैर में बीमारियों से रक्षा के लिए धागा बांधती हैं।

मंदसौर में कुबेर मंदिर

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      मंदसौर में कुबेर मंदिर             मंदसौर भारत के मध्यप्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्राचीन एवं धािर्मक   शहर है। मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर था ,       मंदसौर स्थित खिलचीपुरा में धन के देवता कुबेर का मंदिर धौलागढ़ महादेव शिवलिंग के साथ स्थापित है। उक्त मंदिर 10-12 वीं शताब्दी का है। भगवान कुबेर नेवले पर विराजित है। मूर्ति में कुबेर बड़े पेट वाले , चमुर्भुजाधारी सीधे हाथ में धन की थैली और तो दूसरे में प्याला धारण किए हुए हैं। कुबेर की मूंछे बड़ी और लंबी हैं। केदारनाथ के बाद मंदसौर में ही कुबेर की मूर्ति स्थापित है , जिसकी भगवान के रूप में पूजा की जाती है।       धनतेरस के दिन मंदिर में विशेष पूजा आयोजित की जाती है। मंदिर मराठाकालीन और कुबेर की मूर्ति गुप्तकालीन है। मंदिर की विशेषता यह है कि उसमें दरवाजा नहीं है और मंदिर के पट कभी बंद नहीं होते है। मंदिर के प्रवेश द्वार की उंचाई सिर्फ तीन फीट के लगभग है , जिससे एक बार में सिर्फ एक ही श्रद्धालु झुककर अंदर प्रवेश कर पाता है। मंदिर अष्टकोणीय है और उसके उपर अस्पष्ट गोल गुम्बद बनाया गया हैं। शिवलिंग के साथ ही कुबेर की पूजा की जात

मंदसौर में यशोधर्मन का विजय [ Yashodharman's Victory Pillar in Mandsaur]

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                          मंदसौर में यशोधर्मन का विजय स्तम्भ                मंदसौर भारत के मध्यप्रदेश राज्य में उत्तर - पश्चिम स्थित एक प्रमुख शहर है। मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर था ,  यह क्षेत्र दशपुर जनपद के रूप में जाना जाता था ,              मंदसौर में स्थित ग्राम सौंधनी में गुप्त वंश के राजा यशोधर्मन के दो विजय स्तम्भ के अवशेष पाए गए थे ,  जिनकी उंचाई भू - तल से लगभग  40  फीट है। दोनों स्तम्भों पर पुराने संस्कृत लेख गुप्त अक्षरो में खुदे हुए है ,  जो एक - दूसरे की नकल है। इन बीजकों में यशोधर्मन के कार्यों का उल्लेख कर उन्हें महान राजा बताया गया है कि  6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व उत्तर भारत के पूर्व भाग पर उनके द्वारा राज्य किया गया था और हूण राजा मिहिर कुल को हराया था। ऐसा प्रतीत होता है कि हूणों की पराजय की यादगार में उक्त विजय स्तम्भ तैयार कराया गया था  स्तम्भों का जीर्णोधार सन्  1982  में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा किया गया।         ये स्तम्भ अपने मूल स्थल पर ही रखे गए हैं और स्तम्भ के शीर्ष के भाग भी अवशेष के रूप में है ,  जो कि चैकोर है ,  जिनमें विपरीत दिशाओं में देखते

मंदसौर में द्विमुखी गणेश मंदिर

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मंदसौर में द्विमुखी गणेश मंदिर             मंदसौर भारत के मध्यप्रदेश राज्य में उत्तर - पश्चिम स्थित एक प्रमुख शहर है। मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर था , यह क्षेत्र दशपुर जनपद के रूप में जाना जाता था।               मंदसौर स्थित जनकुपुरा के गणपति चैक में पाषाण युग की लगभग 8 फीट उंची द्विमुखी गणेश स्थानक ( खड़ी अवस्था में ) े गणेश प्रतिमा , मंदिर श्री द्विमुखी चिंताहरण गणपति के नाम से स्थित है। प्रतिमा का आगे का रूप पंचसुंडी तो पीछे की तरफ सेठ की मुद्रा में हैं।         एक ही पाषाण पर निर्मित विशाल आकार की द्विमुखी बड़ी प्रतिमा संभवतः पूरे विश्व में कहीं नहीं है।   दिशा में स्थित नाहर सैय्यद तालाब से मिली थी। जब इसे प्रतिष्ठा के लिए बेैलगाड़ी से नरसिंहपुरा की तरफ ले जाया जा रहा था , तो वर्तमान मंदिर वाले स्थान पर बैलगाड़ी रूक गई। यहां से यह आगे ही नहीं बढ़ी। इस जगह श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित कर मंदिर बना दिया गया। करीब सौ सालों से यह मंदिर विद्यमान हैं       पीछे के मुख में एक सूंड व सिर पर पगड़ी धारण है। जो गणेश जी को श्रेष्ठीधर सेठ के रूप में अभिव्यक्त करता है। वर्तमान में यह मंदिर समू

धमनार मंदिर की गुफाएं [Caves of Dhamnar]

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                                                               धमनार मंदिर की गुफाएं               मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की श्यामगढ़ तहसील से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम चंद्रवासा , जिसका प्राचीन नाम चंद्रगिरी भी है , प्रसिद्ध धर्मराजेश्वर मंदिर के समीप ही धमनार की गुफाएं स्थित है। उक्त गुफाएं उक्त मंदिर मंदसौर से 106 किलोमीटर दूर स्थित है। और इसके निकटतम रेलवे स्टेशन धमनाऱ है। जो इसका निकटतम रेलवे स्टेशन बंबई - नागदा ,- बड़ौदा - रेलवे लाइन पर स्थित है। शैली और विन्यास के अनुसार ये बौद्ध गुफाएं 5-6 से लेकर 8-9 वीं शताब्दी तक निर्मित हो सकती हैै और   लेटेराइट पत्थर की गहरी शिलाओं को तराशकर निर्मित की है।             बौद्ध स्तूप , ( पूजा गृह ), चैत्यगृह और विहार ( बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने का स्थान ) पहाड़ी की ढलान की ओर उत्खनित कर बनाया गया है। बौद्ध भिक्षुओं का ध्यान साधना करने और ठहरने के अनेक विहार , जिनमें कक्ष बने हुए हैंै। कुछ विहारों में कक्ष और चैत्य